डा महेश सिन्हा अकाध दो फोटो को छोडकर कहीं दिखाई नही दिये ना ही उनकी कहीं चर्चा दिखी। खुद उनकी लिखी पोस्ट भी वर्धा के आधिकारैक अजेंडा के बारे में कुछ नही कहती।
वो तो बस इतना ही लिख पाये कि कई शख्सियतों से रूबरू होने का मौका मिला। कई लोग याद किए गए। आलोक धनवा जी की कवितायें और विचार सुनने मिले।
जिस अन्दाज में संजीत त्रिपाठी लिख चुके हैं उसके अनुसार तो महेश सिन्हा को ले जाया गया था और इस काम को खेला बता दिया मतलब कि 'गेम'
यह बात लिखी ग्यी कि सिद्धार्थ ने सौम्यता पूर्ण कहा कि सबको खुला निमंत्रण था। लेकिन यह नहीं बता पाये महेश सिन्हा कि ई-मेल फिर क्यों भेजी गई कुछ ब्लागरों को। मूल सूचना पत्र में भी लिखा गया था
महेश सिन्हा को सरकारी पैसों का भुगतान किया गया तो उसके बदले में वहाँ उनका क्या योगदान था यह ना तो महेश सिन्हा लिख सके ना ही वर्धा विश्विद्यालय बता रहा।
सभी ब्लॉगरों के नाम के आगे पीछे श्री/ सुश्री व जी लगा हुआ समझा जाये।
27 October, 2010
26 October, 2010
वर्धा ब्लॉगर गोष्ठी एवं कार्यशाला का पोस्टमार्टम -6
आज देखिये रवीन्द्र प्रभात क्या कहते हैं वर्धा संगोष्ठी के बारे में
एक अच्छि रिपोर्ट दिये जाने के बाद भी कहिं कहिं कुछ गलत दिख हि गया। जैसे कि लिखा कि इस सगोष्ठी की सबसे बड़ी उपलब्धि रही उत्तर-दक्षिण- पूर्व-पश्चिम सभी दिशाओं से उपस्थित हुए ब्लोगर। ये ब्लागर उपस्थित नहीं हुये थे सरकारी पैसों से आमंत्रित किये गये थे।्यह बात अलग है कि अभी तक वहाँ पहुंचे किसी ब्लॉगर ने मुंह नहीं खोला है कि उन्हें ई-मेल भेज कर बुलवाया गया था। आगे बताया गया कि पहली बार किसी ब्लोगर संगोष्ठी में क़ानून के जानकार श्री पवन दुग्गल उपस्थित हुए। यह भी भुगतन कर बुलये गये थे। बलागरों के हक में सरकारी पैसों का यह एक अच्छा उपयोग दिखा। इस पर अक अलग रिपोर्ट वाली पोस्ट पर अजय कुमार झा ने बिल्कुल ठीक कहdाकि सम्मेलन की सबसे बडी उपलब्धि यही कही जाए कि एक प्र्ख्यात कानूनविद ने ब्लॉगिंग और कानून पर संपूर्ण जानकारी से पूरे ब्लॉगजगत को परिचित कराया
पता नही किस धुन मे आ कर इन्होने लिख डाला कि पहली बार सार्वजनिक तौर पर भिन्न-भिन्न विचारधाराओं के ब्लोगर उपस्थित हुये।
यहीं एक कमेंट करने वाले ने बhतया कि
Priti sagar coordinate the blogging in wardha..
who has been declared Literary writer without any creative work..
who has got prepared fake icard of non existing employee..
इसि ब्लाग पर दिये लिंक से शब्द सभागार पर जाने पर कुछ सीमा तक बैलेंस्ड रिपोर्ट है लेकिन खुद के द्वारा लिखी गई पोस्ट में अपनी तारीफ करते हुये कहते हैं कि लखनऊ से पधारे श्री रवीन्द्र प्रभात ने ... अपने वक्तव्य प्ररित किया तो सभागार में उपास्थित श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए ।
इसी बीच वह लिख गये मठाधीशों के बारे में कि ऐसे लोगों की तादाद अधिक है जो...अपने अनुभवों को साझा करने से डरते हैं कि कहीं कोई हिंदी ब्लॉगजगत का तथाकथित मठाधीश नाराज न हो जाए!
यही ram tyagi ने प्रश्न किया कि I have not yet seen the summary or core results of this sammelan - also if it was govt sponsored, then why was it not visible in public forums -and blogs ?
काफी हद तक अक अछी रिपोर्ट पर इसका किसीने कोई जवाब नहीं दिया
एक अच्छि रिपोर्ट दिये जाने के बाद भी कहिं कहिं कुछ गलत दिख हि गया। जैसे कि लिखा कि इस सगोष्ठी की सबसे बड़ी उपलब्धि रही उत्तर-दक्षिण- पूर्व-पश्चिम सभी दिशाओं से उपस्थित हुए ब्लोगर। ये ब्लागर उपस्थित नहीं हुये थे सरकारी पैसों से आमंत्रित किये गये थे।्यह बात अलग है कि अभी तक वहाँ पहुंचे किसी ब्लॉगर ने मुंह नहीं खोला है कि उन्हें ई-मेल भेज कर बुलवाया गया था। आगे बताया गया कि पहली बार किसी ब्लोगर संगोष्ठी में क़ानून के जानकार श्री पवन दुग्गल उपस्थित हुए। यह भी भुगतन कर बुलये गये थे। बलागरों के हक में सरकारी पैसों का यह एक अच्छा उपयोग दिखा। इस पर अक अलग रिपोर्ट वाली पोस्ट पर अजय कुमार झा ने बिल्कुल ठीक कहdाकि सम्मेलन की सबसे बडी उपलब्धि यही कही जाए कि एक प्र्ख्यात कानूनविद ने ब्लॉगिंग और कानून पर संपूर्ण जानकारी से पूरे ब्लॉगजगत को परिचित कराया
पता नही किस धुन मे आ कर इन्होने लिख डाला कि पहली बार सार्वजनिक तौर पर भिन्न-भिन्न विचारधाराओं के ब्लोगर उपस्थित हुये।
यहीं एक कमेंट करने वाले ने बhतया कि
Priti sagar coordinate the blogging in wardha..
who has been declared Literary writer without any creative work..
who has got prepared fake icard of non existing employee..
इसि ब्लाग पर दिये लिंक से शब्द सभागार पर जाने पर कुछ सीमा तक बैलेंस्ड रिपोर्ट है लेकिन खुद के द्वारा लिखी गई पोस्ट में अपनी तारीफ करते हुये कहते हैं कि लखनऊ से पधारे श्री रवीन्द्र प्रभात ने ... अपने वक्तव्य प्ररित किया तो सभागार में उपास्थित श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए ।
इसी बीच वह लिख गये मठाधीशों के बारे में कि ऐसे लोगों की तादाद अधिक है जो...अपने अनुभवों को साझा करने से डरते हैं कि कहीं कोई हिंदी ब्लॉगजगत का तथाकथित मठाधीश नाराज न हो जाए!
यही ram tyagi ने प्रश्न किया कि I have not yet seen the summary or core results of this sammelan - also if it was govt sponsored, then why was it not visible in public forums -and blogs ?
काफी हद तक अक अछी रिपोर्ट पर इसका किसीने कोई जवाब नहीं दिया
23 October, 2010
वर्धा ब्लॉगर गोष्ठी एवं कार्यशाला का पोस्टमार्टम -5
honesty project real democracy के नाम से आने वाले ब्लाग चलाने वाले जय कुमार झा ने वर्धा के बारे में 3 पोस्तें लिखी और तीनों में बडी honesty से सारा हाल लिख दिया।
पहली पोस्त थी "ब्लोगिंग का उपयोग सामाजिक सरोकार तथा मानवीय मूल्यों को सार्थकता क़ी ओर ले जाने के लिए किये जाने क़ी संभावनाएं बढ़ गयी है।" जिसमें वर्धा संगोष्ठी के विषयों को छोड वे कहते पाये गये कि इस राष्ट्रिय ब्लोगर संगोष्ठी के बाद ब्लोगिंग क़ी सामाजिक सरोकार से जुड़ने तथा मानवीय मूल्यों के उत्थान के लिए प्रयोग करने क़ी संभावनाएं प्रबल हो गयी है| एक बार जब आचार संहिता बात की भी तो फिर उनकी गाडी पतरी से उतर गई।
दूसरी पोस्त आई "वर्धा ब्लोगर संगोष्ठी के पर्दे के पीछे के असल हीरो" जिसमें ब्लोगर कार्यशाला और संगोष्ठी में परदे के पीछे के महत्वपूर्ण योगदान करने वालों के नाम व काम गिनाये गये। और अपना ही विषय ले कर एक विशेष कक्षा क़ी भी व्यवस्था करवा ली।
सरकारी पैसों से अपना उल्लू सीधा करना, भले ही वह कितना ही प्रशंसनीय क्यों न हो, कितना सही है यह तो ईमानदारी का पाठ करने वाले जय कुमार झा ही बता पायेंगे। इस तरह का धन्यवाद ज्ञापन आयोजनकर्तायों का कार्य होता है, किसी भुगतान पाये विशेषज्ञ का नहीं।
तीसरी पोस्त आई "वर्धा संगोष्ठी और कुछ अभूतपूर्व अनुभव व मुलाकातें" जिसमे जूते-चप्पल को खुद अपने हाथ से उठाकर नीयत जगह रखते एक उद्योगपति को देख उनका मन कृतज्ञता से भर गया और मनमोहन सिंह जी,राहुल गांधी तथा सोनिया गांधी जी को इसका पाठ पढ़ने की नसीहत दे बैठे।अब इनको कोई बताये कि जैसा देस वैसा भेस होता है।बडे बडे मशहूर लोग स्वर्ण मन्दिर में लोगों के जूठे बरतन धोते देखे जाते है,जूते साफ करते दिखते है,झाडू लगाते है लेकिन अपने आफिस मे वह काम नही करते
इन्हे महत्वपूर्ण बात यह लगी क़ी ब्लोगरों को पहली बार ब्लोगिंग पर व्याख्यान या आलेख प्रस्तुत करने पर किसी केन्द्रीय विश्वविध्यालय के कुलपति के हाथ से प्रमाण-पत्र दिया गया| अब मुख्य अतिथि प्रमाण्पत्र नहीं देगा तो वह काहे का मुख्य अतिथि। इसे ब्लोगिंग के इतिहास में सम्मान के साथ सदा याद किया जाता रहने की बात तो कह गये लेकिन बता यह भी नही सके कि वह व्याख्यान या आलेख कहां मिल सकते हैं
इसके अलावा आश्रमों के विवरण तो दे दिये लेकिन वर्धा में आचार संहिता या ब्लाग तकनीक के बारे में खुद के किसी योगदान को नहीं बता सके। यह हाल था समाज में परिवर्तन लाने का झंडा उठाये सरकारी पैसों से वर्धा आने-जाने वाले व्यक्ति का
सभी ब्लॉगरों के नाम के आगे पीछे श्री/ सुश्री व जी लगा हुआ समझा जाये।
पहली पोस्त थी "ब्लोगिंग का उपयोग सामाजिक सरोकार तथा मानवीय मूल्यों को सार्थकता क़ी ओर ले जाने के लिए किये जाने क़ी संभावनाएं बढ़ गयी है।" जिसमें वर्धा संगोष्ठी के विषयों को छोड वे कहते पाये गये कि इस राष्ट्रिय ब्लोगर संगोष्ठी के बाद ब्लोगिंग क़ी सामाजिक सरोकार से जुड़ने तथा मानवीय मूल्यों के उत्थान के लिए प्रयोग करने क़ी संभावनाएं प्रबल हो गयी है| एक बार जब आचार संहिता बात की भी तो फिर उनकी गाडी पतरी से उतर गई।
दूसरी पोस्त आई "वर्धा ब्लोगर संगोष्ठी के पर्दे के पीछे के असल हीरो" जिसमें ब्लोगर कार्यशाला और संगोष्ठी में परदे के पीछे के महत्वपूर्ण योगदान करने वालों के नाम व काम गिनाये गये। और अपना ही विषय ले कर एक विशेष कक्षा क़ी भी व्यवस्था करवा ली।
सरकारी पैसों से अपना उल्लू सीधा करना, भले ही वह कितना ही प्रशंसनीय क्यों न हो, कितना सही है यह तो ईमानदारी का पाठ करने वाले जय कुमार झा ही बता पायेंगे। इस तरह का धन्यवाद ज्ञापन आयोजनकर्तायों का कार्य होता है, किसी भुगतान पाये विशेषज्ञ का नहीं।
तीसरी पोस्त आई "वर्धा संगोष्ठी और कुछ अभूतपूर्व अनुभव व मुलाकातें" जिसमे जूते-चप्पल को खुद अपने हाथ से उठाकर नीयत जगह रखते एक उद्योगपति को देख उनका मन कृतज्ञता से भर गया और मनमोहन सिंह जी,राहुल गांधी तथा सोनिया गांधी जी को इसका पाठ पढ़ने की नसीहत दे बैठे।अब इनको कोई बताये कि जैसा देस वैसा भेस होता है।बडे बडे मशहूर लोग स्वर्ण मन्दिर में लोगों के जूठे बरतन धोते देखे जाते है,जूते साफ करते दिखते है,झाडू लगाते है लेकिन अपने आफिस मे वह काम नही करते
इन्हे महत्वपूर्ण बात यह लगी क़ी ब्लोगरों को पहली बार ब्लोगिंग पर व्याख्यान या आलेख प्रस्तुत करने पर किसी केन्द्रीय विश्वविध्यालय के कुलपति के हाथ से प्रमाण-पत्र दिया गया| अब मुख्य अतिथि प्रमाण्पत्र नहीं देगा तो वह काहे का मुख्य अतिथि। इसे ब्लोगिंग के इतिहास में सम्मान के साथ सदा याद किया जाता रहने की बात तो कह गये लेकिन बता यह भी नही सके कि वह व्याख्यान या आलेख कहां मिल सकते हैं
इसके अलावा आश्रमों के विवरण तो दे दिये लेकिन वर्धा में आचार संहिता या ब्लाग तकनीक के बारे में खुद के किसी योगदान को नहीं बता सके। यह हाल था समाज में परिवर्तन लाने का झंडा उठाये सरकारी पैसों से वर्धा आने-जाने वाले व्यक्ति का
सभी ब्लॉगरों के नाम के आगे पीछे श्री/ सुश्री व जी लगा हुआ समझा जाये।
21 October, 2010
वर्धा ब्लॉगर गोष्ठी एवं कार्यशाला का पोस्टमार्टम -4
इस बार बात की जाये मुम्बई की अनीता कुमार की लिखी दो पोस्तों की। उन्होने साफ लिख दिया कि
इससे पता चलता है कि आमंत्रण निमंत्रण भेजा गया था,जिसे सभी सज्जन झूठा बताते हुये कह रहे हैं कि ये तो ओपन सम्मेलन था। किसी को बुलाया नहीं गया था।
लेकिन यह बात कौन बतायेगा कि जब वर्धा का विश्वविद्यालय कहता है कि
और
तो अनीता कुमार को किस कैटिगरी में माना जाये। कभी ऐसा लगा ही नही कि उन्हे ब्लाग तकनीक की ABC मालूम है। लेकिन जब वह लिख्ती हैं कि आचार संहिता पर विचार विमर्श करने के लिए पेपर्स बना कर ले गये थे। बलोग एथिक्स पर हुई मनोवैज्ञानिक शोध पर भी एक पेपर तैयार कर के ले गये थे। तो यह उम्मीद की जाती है कि विश्वविद्यालय,उन्हें भुगतान किये गये धन को उचित ठहराते हुये आम जनता के लिये उन पेपर्स का प्रकाशन अपनी वेबसाईट पर करे।
क्या यह गलत होगा? उनके पेपर ही क्यो बाकी सभी पेपर भी होने चाहिये विश्वविद्यालय की वेबसाईट पर। इन्हे छिपा कर रखने का क्या मतलब। आखिर पता तो चले कि सरकारी धन केवल ब्लागरो की मौज मे नही ल्गा
सभी ब्लॉगरों के नाम के आगे पीछे श्री/ सुश्री व जी लगा हुआ समझा जाये।
इससे पता चलता है कि आमंत्रण निमंत्रण भेजा गया था,जिसे सभी सज्जन झूठा बताते हुये कह रहे हैं कि ये तो ओपन सम्मेलन था। किसी को बुलाया नहीं गया था।
लेकिन यह बात कौन बतायेगा कि जब वर्धा का विश्वविद्यालय कहता है कि
और
तो अनीता कुमार को किस कैटिगरी में माना जाये। कभी ऐसा लगा ही नही कि उन्हे ब्लाग तकनीक की ABC मालूम है। लेकिन जब वह लिख्ती हैं कि आचार संहिता पर विचार विमर्श करने के लिए पेपर्स बना कर ले गये थे। बलोग एथिक्स पर हुई मनोवैज्ञानिक शोध पर भी एक पेपर तैयार कर के ले गये थे। तो यह उम्मीद की जाती है कि विश्वविद्यालय,उन्हें भुगतान किये गये धन को उचित ठहराते हुये आम जनता के लिये उन पेपर्स का प्रकाशन अपनी वेबसाईट पर करे।
क्या यह गलत होगा? उनके पेपर ही क्यो बाकी सभी पेपर भी होने चाहिये विश्वविद्यालय की वेबसाईट पर। इन्हे छिपा कर रखने का क्या मतलब। आखिर पता तो चले कि सरकारी धन केवल ब्लागरो की मौज मे नही ल्गा
सभी ब्लॉगरों के नाम के आगे पीछे श्री/ सुश्री व जी लगा हुआ समझा जाये।
20 October, 2010
वर्धा ब्लॉगर गोष्ठी एवं कार्यशाला का पोस्टमार्टम -3
आज बात की जाये न दैन्यं न पलायनम् ब्लाग लिखने वाले प्रवीण पाण्डेय की। इन्होने 10 तारीख की सुबह 4 बजे अपनी तकलीफ लिखी कि कुछ विचार व्यक्त करने की सार्वजनिक घोषणा होने पर कैसे घबड़ा गये थे। वे यह भी लिखते पाये गये कि इन्हें बिना बताये घोषणा की गई।
आगे वे लिखते हैं कि इन्होने अभी तक विषय पर तब तक ध्यान ही नहीं दिया था, वो तो पोस्टर पर आचार-संहिता लिखा देख विषय का पता चला।
बड़ी बेबाकी से यह सच्चाई भी बता दी कि मैं तो ब्लॉगर दर्शन करने आया था।
इसके बाद जब honesty project democracy ने सिकायत की कि सबसे कम समय उन्होने ही दिया था तो यह आरोप भी स्वीकर कर लिया
अब यह बतायो कि सरकारी पैसों से होने वाले कार्यक्रम में आमंत्रित किये जाने वाले को मालूम ही नहीं कि उसे बुलाया क्यों गया है,विष्य क्या था इस गोष्ठी का,करना क्या है यहाँ उन्हे। ऊपर से यह भी पीड़ा कि बिना बताये बोलने को कह दिया गया। जबकि सभी से पहले ही विषय पर लेख माँगे गये थे। पता है ना महाशय आये क्यों थे? वे तो ब्लागर दर्शन के लिये आये थे।
अब अगर कोई कहे कि ये तो रेल्वे के अधिकारी हैं अपने पैसो से आये होंगे तो वह सुन ले कि इन्हें रेल्वे यात्रा करने के लिये पास देती है, लेकिन सरकारी पैसों वाला।
कुछ भी हो जिस आमत्रित ब्लागर को विषय मालूम न हो, सम्मेलन में दिलचस्पी न हो, केवल ब्लागर दर्शन के लिये आया हो उस पर सरकार पैसा क्यों खर्चे?
आगे वे लिखते हैं कि इन्होने अभी तक विषय पर तब तक ध्यान ही नहीं दिया था, वो तो पोस्टर पर आचार-संहिता लिखा देख विषय का पता चला।
बड़ी बेबाकी से यह सच्चाई भी बता दी कि मैं तो ब्लॉगर दर्शन करने आया था।
इसके बाद जब honesty project democracy ने सिकायत की कि सबसे कम समय उन्होने ही दिया था तो यह आरोप भी स्वीकर कर लिया
अब यह बतायो कि सरकारी पैसों से होने वाले कार्यक्रम में आमंत्रित किये जाने वाले को मालूम ही नहीं कि उसे बुलाया क्यों गया है,विष्य क्या था इस गोष्ठी का,करना क्या है यहाँ उन्हे। ऊपर से यह भी पीड़ा कि बिना बताये बोलने को कह दिया गया। जबकि सभी से पहले ही विषय पर लेख माँगे गये थे। पता है ना महाशय आये क्यों थे? वे तो ब्लागर दर्शन के लिये आये थे।
अब अगर कोई कहे कि ये तो रेल्वे के अधिकारी हैं अपने पैसो से आये होंगे तो वह सुन ले कि इन्हें रेल्वे यात्रा करने के लिये पास देती है, लेकिन सरकारी पैसों वाला।
कुछ भी हो जिस आमत्रित ब्लागर को विषय मालूम न हो, सम्मेलन में दिलचस्पी न हो, केवल ब्लागर दर्शन के लिये आया हो उस पर सरकार पैसा क्यों खर्चे?
19 October, 2010
वर्धा ब्लॉगर गोष्ठी एवं कार्यशाला का पोस्टमार्टम -2
आज बात की जाये कथित रूप से अनूप शुक्ल की मिल्कियत वाले चिट्ठाचर्चा ब्लॉग पर आई वर्धा ब्लॉगर गोष्ठी एवं कार्यशाला पोस्टो की। यहाँ इतना घालमेल है दसियो ब्लागरो वाला यह ब्लाग फेसबूक पर http://www.facebook.com/fursatiya के नाम से र्जिस्टर्ड है और वहाँ लिखा है Chittha Charcha still spear headed by noted Hindi blogger Anup Shukla। जानते हैं spear का मतलब क्या होता है? बरछी,बल्लम,भाले से मारना। कितना सच लिखा है ना?
फुरसतिया जिसे अनूप शुक्ल अपना ट्रेडमार्क मानते हैं। उनका अपना भी ब्लाग है http://hindini.com/fursatiya/ ट्विटर पर http://twitter.com/fursatiya का मतलब है अनूप शुक्ल। अब कैसे बाकी दसियो ब्लागर चिट्ठाचर्चा ब्लाग पर अपना मन लगाये हुये हैं वही जाने। चिट्ठाचर्चा पर बाकियो की मेहनत पर अपना ठ्प्पा लगाये अनूप शुक्ल ने वर्धा ब्लॉगर गोष्ठी एवं कार्यशाला की रिपोर्ट के लिये चिट्ठाचर्चा को चुना जबकि खुद उनका व्यक्तिगत ब्लाग है।
सरकारी पैसों पर हो रहे कार्यक्रम में गंभीरता से शामिल होने की बजाये इनका पूरा ध्यान मजाकिया रिपोर्टिंग में लगा रहा। 9 अक्टूबर को कार्यक्रम शुरू होने के पहले ही आई एक पोस्ट में विनीत कुमार को हिंदी ब्लॉगिंग की सबसे जागरुक और होनहार प्रतिभा दिक्लेयर कर दिया इन्होने। इससे पहले यह खिताब विवेक और कुश को मिलता रहा है। ऊपर से कह भी दिया कि इनको जबरिया बुलाया जाना चाहिये था। अरविन्द मिश्र के बिना मजा नहीं आता इन्हे किसी महफ़िल में यह भी जाहिर कर दिया। गोया बिना लड़ाई झगड़े और नोक-झोंक के नींद नहीं आती महाश्य को। आप देख रहे हैं ना कि यह वर्धा कार्यक्रम की रिपोर्टिंग है
इलाहाबाद प्रकरण की याद इनका पीछा नहीं छोड़ती। इसी चक्कर में एक छिछोरी कविता भी रच दि गयी। अब वर्धा कार्यक्रम से इसका क्या लेना देना?इस पर अर्विन्द मिश्र जी ने तुरंत आपत्ति लेते हुए इसे had hai bevkoofee kee कहते हुये चिट्ठाचर्चा ब्लाग की कुछ लाईनों के रूप में आईना दिखाया कि चिट्ठा चर्चा हिन्दी चिट्ठामंडल का अपना मंच है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया देते समय इसका मान रखें। असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।
इस पोस्ट पर डॉ. अनुराग ने टिप्पणी में अपनी बात रखी कि उन आंकड़ो पे खुश नहीं होना चाहिए के चिट्ठे ६०० से छह हज़ार हो गए है .....महत्वपूर्ण बात है संवाद की दिशा किस ओर में जा रही है ?कितनी पोस्टे ऐसे है जो गुजरते वक़्त के बाद भी पठनीय है ...कितनी सार्थक बहसे हुई है ? अच्छा पढने वाले लोग कितना प्रोत्साहित हुए है .....? ओर उन्हें कैसे प्रोत्साहित किया जा सकता है ? एक दूसरे की प्रशंसाओ के दौर से बाहर निकल ब्लॉग एग्रीगेटर को ओर बेहतर ओर सरल कैसे बना सकते है इस विषय पर बात करिए या प्रशन उठाये?
डा० अमर कुमार ने रहस्यमय अंदाज में कह ही दिया कि सुना है इस सम्मेलन में भाग लेने गये सभी प्रतिभागियों को अपनी नाक की लम्बाई दिखानी पड़ी थी ?
अगली पोस्ट में नैतिकता की बात पर अनूप शुक्ल ने कहा कि कोई भी आचार संहिता कम से कम ब्लॉगिंग पर लागू न हो सकेगी। सही बात कही ना?वरना खुद इनके ब्लाग पर रक्षा मंत्रालय की निगाह पड़ जाये तो इनके कारखाने के तमाम हथियारों की फोटू और डिटेल का क्या जवाब देंगे!
डा अमर कुमार ने दिल की बात कह ही दी कि गैर-अकादमिक आयोजन के रूप में ऎसी गोष्ठियाँ, ऎसे सम्मेलनादि ध्रुवीकरण एवँ गुटों के गठन की मातृशक्ति है। अपने को लॉबीइँग के शिकार होते रहने से हम कब मुक्त हो पायेंगे?
10 अक्टुबर की पोस्ट में यह बता ही दिया गया कि वहाँ आये काफ़ी लोगों को ब्लॉगिंग के बारे में पहली बार जानकारी मिली। अब बतायो, कहाँ ब्लाग की तकनीकी बातें बताने की बात कही जा रही थी कहाँ लोगों को मालूम ही नहीं कि ब्लागिंग क्या होती है।
10 की सुबह सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी कहते पाये गये कि विश्वविद्यालय के स्थापत्य का नमूना पहाड़ी टीलों की सैर कराकर दिखाऊंगा। अब यह सैर-सपाटा ब्लागिग के किस कार्यक्रम में शामिल था भाई?
cmpershad ने चुटकी भी ली कि आज का दिन ऐतिहासिक है। 10.10.10। सारे दस नम्बरी यहां हैं।
यह बताया गया कि 9 की शाम का सत्र कविता पाठ का था। कई ब्लॉगरों ने अपनी रचनायें सुनायीं। ब्लागिंग तकनीक और आचार संहिता की बातों के बीच कवि सम्मेलन!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
10 के सत्र में अविनाश वाचस्पति ने कहा कि ऐसी बातें करने से बचना चाहिये जिससे लोगों को बुरा लग सकता है। और अगले ही दिन उनकी मीठी गोली कईयों को बुरी लग गई।
एक ही तरह के फोटो और वही बातें दोहराये जाने से उकता कर राम त्यागी ने कह ही डाला कि Can we talk about the results instead of posting the pics, and repeated one liners ? Is someone going to compile the reports which are going to be made public? लेकिन आज तक किसी के कानो में जूँ भी नहीं रेंगी सब के सब फोटो और मिलन कथायों के बारे में लिखते जा रहे हैं
इस मांग पर तिलमिलाये महेश सिन्हा ने कह डाला कि यह इस संस्थान द्वारा आयोजित कार्यक्रम था न कि प्रायोजित। अब इन्हे यह समझाना पड़ेगा कि शब्दों के खेल से ऊपर यह भी बताया जाये कि जो भी भुगतान हुया वह कर-दातायों का पैसा था कि नहीं?
डा अमर कुमार ने एक बेहद सटिख़ बात कह दी कि चर्चा के इसी मँच (चिट्टचर्चा) से विभूति बाबू की कैसी थुड़ी थुड़ी हुई थी http://chitthacharcha.blogspot.com/2010/08/blog-post_1564.html अब उसके प्रायश्चित अनुष्ठान में यह आयोजन विभूति नारायण जी की कृपा से उनकी डेहरी पर प्रायोजित हो रहा और चर्चा के पिछले तमाम रिपोर्ताज में इस तथ्य का उल्लेख नहीं है। ब्लॉगिंग का मुक्त मँच क्या सरकारी / अर्ध-सरकारी इमदाद और दो-नम्बरी बाज़ारवाद की राह चल चुका है?
यहीं राम त्यागी ने फिर कहा कि कार्यक्रम अगर आयोजित भी था तो क्या मिनट ऑफ मीटिंग या एक प्रोपर सारांश भेजा जाना न्यायोचित नहीं? या फिर सटासट फोटो और वाहवाही चिपकाते जाओ और वाहवाही की कमेन्ट लेते जायो तो डॉ महेश सिन्हा ने कहा मुझे समझ नहीं आ रहा है की आपको क्षोभ किस बात का है। अब महेश सिन्हा को कौन बताये कि रिपोर्ट का मतलब पर्सनल खिंची फोटू और मिलन क्थायें लिखना नहीं होता
इस में और आने वाली पोस्ट में भी दुसरों की लिखी पोस्टों की चर्चा की गयी चिट्टचर्चा के बहाने। लेकिन महेश सिन्हा के कहे गये 'महात्मा गांधी हिन्दी विश्वविद्यालय हिन्दी भाषा के उन्नयन एवं प्रसार के लिए स्थापित है।' के अनुसार कहीं भी नहीं बताया गया कि इस कार्यक्रम से हिन्दी भाषा का उन्न्यन व प्रसार कैसे हुया?
रहस्य की चादर ओड़ाये सतीश सक्सेना लिख ही मारे कि सशंकित तो अनूप शुक्ल फुरसतिया से ही रहना चाहिए जो किसी की भी धोती खोलने को हर समय तैयार रहते है ...बचपन में हरकतों के बारे में भी लिख मारो एक दिन!
लोज्जी।लाईट चले गई।यूपीएस सातह नहीं देने वाला।यह अधूरा पोस्तमार्तम यहिं छोड़ना पडेगा। लऊत कर आता हूं।
सभी ब्लॉगरों के नाम के आगे पीछे श्री/ सुश्री व जी लगा हुआ समझा जाये।
फुरसतिया जिसे अनूप शुक्ल अपना ट्रेडमार्क मानते हैं। उनका अपना भी ब्लाग है http://hindini.com/fursatiya/ ट्विटर पर http://twitter.com/fursatiya का मतलब है अनूप शुक्ल। अब कैसे बाकी दसियो ब्लागर चिट्ठाचर्चा ब्लाग पर अपना मन लगाये हुये हैं वही जाने। चिट्ठाचर्चा पर बाकियो की मेहनत पर अपना ठ्प्पा लगाये अनूप शुक्ल ने वर्धा ब्लॉगर गोष्ठी एवं कार्यशाला की रिपोर्ट के लिये चिट्ठाचर्चा को चुना जबकि खुद उनका व्यक्तिगत ब्लाग है।
सरकारी पैसों पर हो रहे कार्यक्रम में गंभीरता से शामिल होने की बजाये इनका पूरा ध्यान मजाकिया रिपोर्टिंग में लगा रहा। 9 अक्टूबर को कार्यक्रम शुरू होने के पहले ही आई एक पोस्ट में विनीत कुमार को हिंदी ब्लॉगिंग की सबसे जागरुक और होनहार प्रतिभा दिक्लेयर कर दिया इन्होने। इससे पहले यह खिताब विवेक और कुश को मिलता रहा है। ऊपर से कह भी दिया कि इनको जबरिया बुलाया जाना चाहिये था। अरविन्द मिश्र के बिना मजा नहीं आता इन्हे किसी महफ़िल में यह भी जाहिर कर दिया। गोया बिना लड़ाई झगड़े और नोक-झोंक के नींद नहीं आती महाश्य को। आप देख रहे हैं ना कि यह वर्धा कार्यक्रम की रिपोर्टिंग है
इलाहाबाद प्रकरण की याद इनका पीछा नहीं छोड़ती। इसी चक्कर में एक छिछोरी कविता भी रच दि गयी। अब वर्धा कार्यक्रम से इसका क्या लेना देना?इस पर अर्विन्द मिश्र जी ने तुरंत आपत्ति लेते हुए इसे had hai bevkoofee kee कहते हुये चिट्ठाचर्चा ब्लाग की कुछ लाईनों के रूप में आईना दिखाया कि चिट्ठा चर्चा हिन्दी चिट्ठामंडल का अपना मंच है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया देते समय इसका मान रखें। असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।
इस पोस्ट पर डॉ. अनुराग ने टिप्पणी में अपनी बात रखी कि उन आंकड़ो पे खुश नहीं होना चाहिए के चिट्ठे ६०० से छह हज़ार हो गए है .....महत्वपूर्ण बात है संवाद की दिशा किस ओर में जा रही है ?कितनी पोस्टे ऐसे है जो गुजरते वक़्त के बाद भी पठनीय है ...कितनी सार्थक बहसे हुई है ? अच्छा पढने वाले लोग कितना प्रोत्साहित हुए है .....? ओर उन्हें कैसे प्रोत्साहित किया जा सकता है ? एक दूसरे की प्रशंसाओ के दौर से बाहर निकल ब्लॉग एग्रीगेटर को ओर बेहतर ओर सरल कैसे बना सकते है इस विषय पर बात करिए या प्रशन उठाये?
डा० अमर कुमार ने रहस्यमय अंदाज में कह ही दिया कि सुना है इस सम्मेलन में भाग लेने गये सभी प्रतिभागियों को अपनी नाक की लम्बाई दिखानी पड़ी थी ?
अगली पोस्ट में नैतिकता की बात पर अनूप शुक्ल ने कहा कि कोई भी आचार संहिता कम से कम ब्लॉगिंग पर लागू न हो सकेगी। सही बात कही ना?वरना खुद इनके ब्लाग पर रक्षा मंत्रालय की निगाह पड़ जाये तो इनके कारखाने के तमाम हथियारों की फोटू और डिटेल का क्या जवाब देंगे!
डा अमर कुमार ने दिल की बात कह ही दी कि गैर-अकादमिक आयोजन के रूप में ऎसी गोष्ठियाँ, ऎसे सम्मेलनादि ध्रुवीकरण एवँ गुटों के गठन की मातृशक्ति है। अपने को लॉबीइँग के शिकार होते रहने से हम कब मुक्त हो पायेंगे?
10 अक्टुबर की पोस्ट में यह बता ही दिया गया कि वहाँ आये काफ़ी लोगों को ब्लॉगिंग के बारे में पहली बार जानकारी मिली। अब बतायो, कहाँ ब्लाग की तकनीकी बातें बताने की बात कही जा रही थी कहाँ लोगों को मालूम ही नहीं कि ब्लागिंग क्या होती है।
10 की सुबह सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी कहते पाये गये कि विश्वविद्यालय के स्थापत्य का नमूना पहाड़ी टीलों की सैर कराकर दिखाऊंगा। अब यह सैर-सपाटा ब्लागिग के किस कार्यक्रम में शामिल था भाई?
cmpershad ने चुटकी भी ली कि आज का दिन ऐतिहासिक है। 10.10.10। सारे दस नम्बरी यहां हैं।
यह बताया गया कि 9 की शाम का सत्र कविता पाठ का था। कई ब्लॉगरों ने अपनी रचनायें सुनायीं। ब्लागिंग तकनीक और आचार संहिता की बातों के बीच कवि सम्मेलन!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
10 के सत्र में अविनाश वाचस्पति ने कहा कि ऐसी बातें करने से बचना चाहिये जिससे लोगों को बुरा लग सकता है। और अगले ही दिन उनकी मीठी गोली कईयों को बुरी लग गई।
एक ही तरह के फोटो और वही बातें दोहराये जाने से उकता कर राम त्यागी ने कह ही डाला कि Can we talk about the results instead of posting the pics, and repeated one liners ? Is someone going to compile the reports which are going to be made public? लेकिन आज तक किसी के कानो में जूँ भी नहीं रेंगी सब के सब फोटो और मिलन कथायों के बारे में लिखते जा रहे हैं
इस मांग पर तिलमिलाये महेश सिन्हा ने कह डाला कि यह इस संस्थान द्वारा आयोजित कार्यक्रम था न कि प्रायोजित। अब इन्हे यह समझाना पड़ेगा कि शब्दों के खेल से ऊपर यह भी बताया जाये कि जो भी भुगतान हुया वह कर-दातायों का पैसा था कि नहीं?
डा अमर कुमार ने एक बेहद सटिख़ बात कह दी कि चर्चा के इसी मँच (चिट्टचर्चा) से विभूति बाबू की कैसी थुड़ी थुड़ी हुई थी http://chitthacharcha.blogspot.com/2010/08/blog-post_1564.html अब उसके प्रायश्चित अनुष्ठान में यह आयोजन विभूति नारायण जी की कृपा से उनकी डेहरी पर प्रायोजित हो रहा और चर्चा के पिछले तमाम रिपोर्ताज में इस तथ्य का उल्लेख नहीं है। ब्लॉगिंग का मुक्त मँच क्या सरकारी / अर्ध-सरकारी इमदाद और दो-नम्बरी बाज़ारवाद की राह चल चुका है?
यहीं राम त्यागी ने फिर कहा कि कार्यक्रम अगर आयोजित भी था तो क्या मिनट ऑफ मीटिंग या एक प्रोपर सारांश भेजा जाना न्यायोचित नहीं? या फिर सटासट फोटो और वाहवाही चिपकाते जाओ और वाहवाही की कमेन्ट लेते जायो तो डॉ महेश सिन्हा ने कहा मुझे समझ नहीं आ रहा है की आपको क्षोभ किस बात का है। अब महेश सिन्हा को कौन बताये कि रिपोर्ट का मतलब पर्सनल खिंची फोटू और मिलन क्थायें लिखना नहीं होता
इस में और आने वाली पोस्ट में भी दुसरों की लिखी पोस्टों की चर्चा की गयी चिट्टचर्चा के बहाने। लेकिन महेश सिन्हा के कहे गये 'महात्मा गांधी हिन्दी विश्वविद्यालय हिन्दी भाषा के उन्नयन एवं प्रसार के लिए स्थापित है।' के अनुसार कहीं भी नहीं बताया गया कि इस कार्यक्रम से हिन्दी भाषा का उन्न्यन व प्रसार कैसे हुया?
रहस्य की चादर ओड़ाये सतीश सक्सेना लिख ही मारे कि सशंकित तो अनूप शुक्ल फुरसतिया से ही रहना चाहिए जो किसी की भी धोती खोलने को हर समय तैयार रहते है ...बचपन में हरकतों के बारे में भी लिख मारो एक दिन!
सभी ब्लॉगरों के नाम के आगे पीछे श्री/ सुश्री व जी लगा हुआ समझा जाये।
17 October, 2010
वर्धा ब्लॉगर गोष्ठी एवं कार्यशाला का पोस्टमार्टम -1
हर सफलता का पैमाना अलग होता है, आज जो वर्धा ब्लॉगर गोष्ठी एवं कार्यशाला को सफल बता रहे है वह उनका नजरिया है। अपन तो यहाँ पोस्तमार्टम के लिए हैं। एक सफल पोस्तमार्टम के लिए। अब पोस्टमार्टम तो पोस्तमार्टम होता है हो सकता है कईयों को बदबू आये या वह यह सब देख ना पाये उनसे बिनती है कि आगे बढने से पहले ही यहाँ से भाग लें।
मैंने पूरा एक हफ़्ता वेट किया इस ब्लॉगर गोष्ठी एवं कार्यशाला पर आने वाली सभी पोस्टों के लिए। आइये देखें पूरी पिक्चर
29 जून को सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी के व्यक्तिगत ब्लॉग की एक पोस्ट में बताया गया कि वर्धा वि.वि. द्वारा एक नियमित वार्षिक आयोजन बनाने के क्रम में कुलपति जी ने इस वर्ष के आयोजन की हरी झण्डी दिखा एक विज्ञप्ति जारी कर इसकी कमान उन्हें सौंप दी गई है। आप इसे देखिए-
अब यह विज्ञप्ति आई एक व्यक्तिगत ब्लॉग पर, हिन्दी विश्वविद्यालय की वेबसाईट http://hindivishwa.org पर नहीं। मैंने गतिविधियाँ,सूचनापट्ट सेक्शन के अलावा अधिक बारीकी से नहीं देखा है हो सकता है कि किसी कोने में दुबकी पड़ी हो। हो गई आचार संहिता के उलंघन की शुरूआत्।
फिर विश्वविद्यालय की वेबसाईट पर एक सुचना आई कि ईद–उल-फित्र की संभावित तारीख से टकराने के कारण ब्लॉगर गोष्ठी की तारीख टालकर नयी तारीख तय कर ली गयी है। अब यह सम्मेलन 9-10 अक्टूबर, 2010 को आयोजित होगा। इधर व्यक्तिगत ब्लॉग पर लिखा गया कि कुलपति जी ने इसे जल्दी से जल्दी कराने के उद्देश्य से चटपट तारीख तय कर दी थी। रमजान के आखिरी दिन देश ईद मुबारक की खुशियों में डूबा रहेगा, ऐसे में यहाँ ब्लॉगरी का मजमा लगाकर अपनी भद्द पिटवाने का इन्तजाम भला कौन करेगा? अब यह तो राष्ट्रवादी, हिदूवादी ब्लॉगर ही स्पष्ट करेंगे कि मन्नू भाई और महारानी, युवराज पर आये दिन अपना प्रेम उड़ेलने वाले क्या यह बात सही मानते हैं कि सारा देश ईद मुबारक की खुशियों में डुबा रहता है और क्या इसकी परवाह कर इस तरह का आयोजन टाला जाता है? (राष्ट्रवादी, हिन्दूवादी ब्लॉगर का उल्लेख चुटकी लेने के लिये किया गया है। ऐसी चुटकी लेने की प्रेरणा इसी सम्मेलन में शामिल अनूप शुक्ल के एक कथ्य से मिली है)
इसी व्यक्तिगत ब्लॉग पर बताया गया कि इच्छुक अभ्यर्थियों को निर्धारित प्रारूप पर सूचना प्रेषित करते हुए अपना पंजीकरण कराना होगा। पंजीकरण का कार्य सामान्यतः पहले आओ-पहले पाओ नियम के आधार पर किया जाएगा। निर्धारित संख्या पूरी हो जाने पर पंजीकरण का कार्य कभी भी बन्द किया जा सकता है। यह बात पहले कहीं नहीं की गई, मूल सूचना पत्र में भी नहीं। मतलब यह कि जिनको तकनीक सिखाने जा रहे हैं उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि इस प्रारूप को पहले डाउनलोद करके, फिर उसका प्रिंट निकाल कर उसमें अपनी जानकारी दें, फिर उसे स्कैन करके ईमेल से भेज दें या डाक से भेजें। ऊपर से मुसीबत यह भी कि इसे राषट्रीय सम्मेलन कहे जाने के बाद भी इसकी सूचना किसी राष्ट्रीय अखबार में नहीं छपवाई गई। प्रवीण पांडे द्वारा की गई ऑनलाईन फार्म की मांग भी अनसुनी कर दी गई
इस बीच इस कार्यक्रम से ठीक एक दिन पहले ही 8 अक्टूबर को एक नया ब्लॉग उभर कर आ गया हिंदी विश्व। इसका माईबाप कौन है पता नहीं लेकिन देखने से आभास होता है कि इसका वर्धा के हिन्दी विश्वविद्यालय से कोई लेना-देना है। मतलब एक सरकारी वेबसाईट के बदले गूगल की मुफ़्तखोरी कर बना हिंदी विश्विद्यालय का यह अनधिकृत चिट्ठा बतायेगा कार्यक्रमों की जानकारी! सरकार का यह स्पष्ट आदेश है कि सरकारी वेबसाईट्स या सुचनायें निजी/ विदेशी सर्वरों पर नहीं होनी चाहिये।
यहाँ बताया गया कि इस संगोष्ठी व कार्यशाला में भाग लेने वाले हिन्दी ब्लॉगर्ज़ में विशिष्ट नाम हैं -
अब आगे बढ़ा जाये। 9 अक्टूबर को ग्राफ़िक्स डिजाईनर का कोर्स किये हुये हैडर बनाने के उस्ताद ललित शर्मा की पोस्ट आई http://lalitdotcom.blogspot.com/2010/10/blog-post_09.html कि डेढ वर्षों से ब्लागिंग कर रहे हैं, सैकड़ों ब्लागर मित्रों से मिले हजारों के ब्लॉग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। लगता है कि इतने दिनों में भी ब्लॉगर होने की अहर्ताएं पूरी नहीं कर पाए हैं। शायद इसीलिए वर्धा के सरकारी ब्लॉगर सम्मेलन का आमंत्रण हमारे तक नहीं पहुंच पाया।
9 अक्टूबर को ही http://hindi-vishwa.blogspot.com/2010/10/blog-post_09.html पर बताया गया 'उदघाटन वक्तव्य देते हुए कुलपति श्री विभूतिनारायण राय जी ने कहा कि ...ब्लॉगिंग जगत में राज्य और राष्ट्र नियंत्रण से अधिक व्यक्गित आचार संहिता लागू होती है।' अब इसे क्या कहा जाये कि अनूप शुक्ल ने अध्यक्षीय व्यक्तत्व के विरूद्ध कह डाला कि ब्लॉगिंग की आचार संहिता की बात खामख्याली है। और इस बात को साबित करने के लिये वे हमेशा की तरह अपने व्यक्तिगत ब्लॉग की बजाये, ब्लॉग पर चर्चायों के लिये बने एक सामूहिक ब्लॉग का सहारा ले अपनी रिपोर्टनुमा बातें डालते रहे। वैसे भी ब्लॉगिंग में सर्वाधिक ऊधम मचाने वाला आचार संहिता से सहमत कैसे हो सकता है।
ललित शर्मा की 10 अक्टूबर वाली पोस्ट में एक ईमेल का चित्र दिया गया है जिसमें दिखता है कि 27 जुलाई को वह ईमेल सिद्धार्थ सहकर त्रिपाठी की व्यक्तिगत ईमेल से भेजा गया है व उत्तर भी उसी पर देने की बात की गयी है जबकि हिंदी विश्वविद्यालय का उसमें कोई सम्पर्क पता नहीं। मतलब कार्यक्रम सरकारी और सुचनायें मंगाये एक व्यक्ति! कोई समिति कोई समूह नहीं?
क्रमश: जारी है पोस्तमार्टम
अगला मामला कुछ घंटों में
सभी ब्लॉगरों के नाम के आगे पीछे श्री/ सुश्री व जी लगा हुआ समझा जाये।
मैंने पूरा एक हफ़्ता वेट किया इस ब्लॉगर गोष्ठी एवं कार्यशाला पर आने वाली सभी पोस्टों के लिए। आइये देखें पूरी पिक्चर
29 जून को सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी के व्यक्तिगत ब्लॉग की एक पोस्ट में बताया गया कि वर्धा वि.वि. द्वारा एक नियमित वार्षिक आयोजन बनाने के क्रम में कुलपति जी ने इस वर्ष के आयोजन की हरी झण्डी दिखा एक विज्ञप्ति जारी कर इसकी कमान उन्हें सौंप दी गई है। आप इसे देखिए-
आप पढ़ रहे होंगे कि हिन्दी ब्लॉगिंग को बढ़ावा देने तथा इस माध्यम व प्रवृत्तियों पर विचार विमर्श करने के लिये प्रतिवर्ष एक राष्ट्रीय सेमिनार वर्धा में कराये जाने के निर्णय के साथ इस आयोजन का उद्देश्य हिन्दी ब्लॉगिंग को जनोपयोगी ज्ञान-विज्ञान, स्वस्थ मनोरंजन व उत्कृष्ट साहित्य के संवाहक के रूप में एक सार्थक भूमिका निभाने के लिये तैयार करने व इसके प्रति जनसामान्य में एक सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने की बात भी है। अब इसका कितना पालन हुया इसे देख ही रहे हैं सभी जागरूक ब्लॉगर्।
इसमें कहा गया है कि विशेषज्ञ ब्लॉगरों द्वारा लेखन के तकनीकी व व्यवहारिक पक्षों की समुचित जानकारी दी जायेगी। आप खुद देख लीजिये कि कितने विशेषज्ञ ब्लॉगर आये या बुलाये गये और क्या जानकारी दी गई।
देश भर से आमंत्रित शीर्षस्थ/ लोकप्रिय ब्लॉगर सम्मेलन होगा। यहाँ यह साफ बता दिया गया है कि आमंत्रित ब्लॉगरर्स का ही सम्मेल्लन होगा और वह भी लोकप्रिय या शीर्ष्स्थ ब्लॉगरों का। जबकि आप देखेंगे कि कई स्वर ऐसे भी आये जो यह कहते हैं कि यह आमंत्रण सबके लिए था या फिर नामांकन आमन्त्रित किए गए थे। ईमेल पर आमंत्रण का इन्तेजार करते बैठे रहने वालों की भी खिल्ली उड़ाई गई।
यह अपेक्षा की गई कि हिन्दी ब्लॉगिंग को सकारात्मक व सार्थक माध्यम कैसे बनाया जा सकता है इस बारे में ठोस सुझाव आयें। लेकिन देखा गया कि लगभग सभी 'आमंत्रित' ब्लॉगरों ने अपने ब्लॉग पर एक-दूसरे के मिलन की कथायें और चित्र डाल कर ही नमस्ते कर ली
यह भी बता दिया गया था कि आने-जाने का किराया व अन्य सुविधायें आमंत्रित ब्लॉगरों को ही मिलेंगी।
फिर विश्वविद्यालय की वेबसाईट पर एक सुचना आई कि ईद–उल-फित्र की संभावित तारीख से टकराने के कारण ब्लॉगर गोष्ठी की तारीख टालकर नयी तारीख तय कर ली गयी है। अब यह सम्मेलन 9-10 अक्टूबर, 2010 को आयोजित होगा। इधर व्यक्तिगत ब्लॉग पर लिखा गया कि कुलपति जी ने इसे जल्दी से जल्दी कराने के उद्देश्य से चटपट तारीख तय कर दी थी। रमजान के आखिरी दिन देश ईद मुबारक की खुशियों में डूबा रहेगा, ऐसे में यहाँ ब्लॉगरी का मजमा लगाकर अपनी भद्द पिटवाने का इन्तजाम भला कौन करेगा? अब यह तो राष्ट्रवादी, हिदूवादी ब्लॉगर ही स्पष्ट करेंगे कि मन्नू भाई और महारानी, युवराज पर आये दिन अपना प्रेम उड़ेलने वाले क्या यह बात सही मानते हैं कि सारा देश ईद मुबारक की खुशियों में डुबा रहता है और क्या इसकी परवाह कर इस तरह का आयोजन टाला जाता है? (राष्ट्रवादी, हिन्दूवादी ब्लॉगर का उल्लेख चुटकी लेने के लिये किया गया है। ऐसी चुटकी लेने की प्रेरणा इसी सम्मेलन में शामिल अनूप शुक्ल के एक कथ्य से मिली है)
इसी व्यक्तिगत ब्लॉग पर बताया गया कि इच्छुक अभ्यर्थियों को निर्धारित प्रारूप पर सूचना प्रेषित करते हुए अपना पंजीकरण कराना होगा। पंजीकरण का कार्य सामान्यतः पहले आओ-पहले पाओ नियम के आधार पर किया जाएगा। निर्धारित संख्या पूरी हो जाने पर पंजीकरण का कार्य कभी भी बन्द किया जा सकता है। यह बात पहले कहीं नहीं की गई, मूल सूचना पत्र में भी नहीं। मतलब यह कि जिनको तकनीक सिखाने जा रहे हैं उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि इस प्रारूप को पहले डाउनलोद करके, फिर उसका प्रिंट निकाल कर उसमें अपनी जानकारी दें, फिर उसे स्कैन करके ईमेल से भेज दें या डाक से भेजें। ऊपर से मुसीबत यह भी कि इसे राषट्रीय सम्मेलन कहे जाने के बाद भी इसकी सूचना किसी राष्ट्रीय अखबार में नहीं छपवाई गई। प्रवीण पांडे द्वारा की गई ऑनलाईन फार्म की मांग भी अनसुनी कर दी गई
इसी सूचना में दूसरे दिन देश भर के नामचीन ब्लॉगर्स का सम्मेलन होगा यह बताया गया और इसमें मूल सुचना में नजर आ रहा लोकप्रिय ब्लॉगर्स शब्द हटा दिया गया। अब यह नामचीन ब्लॉगर, लोकप्रिय ब्लॉगर, शीर्षस्थ ब्लॉगर कौन होते हैं यह कौन बताए? कहने वाले तो झूम-झूम के यह भी कहते हैं कि बदनाम हैं तो क्या? नाम तो है। चिट्ठाजगत के टॉप 40 सक्रिय ब्लॉग धारकों की सूची वाले नामचीन नहीं हैं क्या? आप खुद देखिये कि उनमें से कितनों को आमंत्रित किया गया।
यहीं बताया गया कि इच्छुक विद्यार्थी व अन्य नये लोग जो ब्लॉगिंग सीखना चाहते हैं लेकिन इसके तकनीकी पक्ष के बारे में कुछ भी नहीं जानते, अन्तर्जाल की दुनिया से अनभिज्ञ हैं लेकिन कुछ लिखने-पढ़ने का शौक रखते हैं, उन्हें इस कार्यशाला के माध्यम से ब्लॉगिंग संवंधी जरूरी बातें बतायी जाएंगी और प्रायोगिक प्रदर्शन भी किया जाएगा। ऐसे लोगों को अभ्यर्थी की संज्ञा दी गयी है। इस वर्कशॉप में प्रशिक्षण देने के लिए और अगले दिन की विचार गोष्ठी में अपना मत व्यक्त करने के लिए जो अनुभवी ब्लॉगर वि.वि. द्वारा आमंत्रित किए जाएंगे वे हमारे प्रतिभागी कहलाएंगे। आगे देखते हैं कि कितने विद्यार्थी आमंत्रित किये गये और कितने अन्य नये लोग आये।
यहीं बताया गया कि इच्छुक विद्यार्थी व अन्य नये लोग जो ब्लॉगिंग सीखना चाहते हैं लेकिन इसके तकनीकी पक्ष के बारे में कुछ भी नहीं जानते, अन्तर्जाल की दुनिया से अनभिज्ञ हैं लेकिन कुछ लिखने-पढ़ने का शौक रखते हैं, उन्हें इस कार्यशाला के माध्यम से ब्लॉगिंग संवंधी जरूरी बातें बतायी जाएंगी और प्रायोगिक प्रदर्शन भी किया जाएगा। ऐसे लोगों को अभ्यर्थी की संज्ञा दी गयी है। इस वर्कशॉप में प्रशिक्षण देने के लिए और अगले दिन की विचार गोष्ठी में अपना मत व्यक्त करने के लिए जो अनुभवी ब्लॉगर वि.वि. द्वारा आमंत्रित किए जाएंगे वे हमारे प्रतिभागी कहलाएंगे। आगे देखते हैं कि कितने विद्यार्थी आमंत्रित किये गये और कितने अन्य नये लोग आये।
यहीं कहा गया कि अपने ब्लॉगर मित्रों से इस सम्मेलन के लिए अध्ययन पत्र प्रस्तुत करने हेतु प्रस्ताव मांगे हैं। हमें जो प्रस्ताव प्राप्त होंगे उस आधार पर वि.वि. द्वारा सम्मेलन के प्रतिभागियों का चयन किया जाएगा और आमन्त्रण पत्र भेंजे जाएंगे। बजट की सीमा देखते हुए असीमित संख्या का आह्वाहन नहीं किया जा सकता, इसलिए आमंत्रण की मजबूरी है। निजी व्यय पर आने वालों के लिए कोई मनाही नहीं है। अपने ब्लॉगर मित्रों से? क्यों भई मेरे या किसी और के ब्लॉगर मित्रों से क्यों नहीं? विश्वविद्यालय द्वारा सम्मेलन के प्रतिभागियों के चयन हेतु कोई समिति बनी थी कि नहीं इसका कहीं आता-पता नहीं लगा है। निजी व्यय पर कौन सा ब्लOउगर पहुँचा इसका खुलासा किया जाना अभी बाकी है। हालांकि Sanjeet Tripathi said...koshish karunga ki bataur ek shrota pahuch kar laabh utha sakun
इस बीच इस कार्यक्रम से ठीक एक दिन पहले ही 8 अक्टूबर को एक नया ब्लॉग उभर कर आ गया हिंदी विश्व। इसका माईबाप कौन है पता नहीं लेकिन देखने से आभास होता है कि इसका वर्धा के हिन्दी विश्वविद्यालय से कोई लेना-देना है। मतलब एक सरकारी वेबसाईट के बदले गूगल की मुफ़्तखोरी कर बना हिंदी विश्विद्यालय का यह अनधिकृत चिट्ठा बतायेगा कार्यक्रमों की जानकारी! सरकार का यह स्पष्ट आदेश है कि सरकारी वेबसाईट्स या सुचनायें निजी/ विदेशी सर्वरों पर नहीं होनी चाहिये।
यहाँ बताया गया कि इस संगोष्ठी व कार्यशाला में भाग लेने वाले हिन्दी ब्लॉगर्ज़ में विशिष्ट नाम हैं -
हैदराबाद से प्रो. ऋषभदेव शर्मा,
कलकत्ता से डॉ. प्रियंकर पालीवाल,
लंदन से डॉ. कविता वाचक्नवी,
उदयपुर से डॉ. (श्रीमती) अजित गुप्ता,
अहमदाबाद से श्री संजय बेंगाणी,
कानपुर से श्री अनूप शुक्ल,
उज्जैन से श्री सुरेश चिपलूनकर,
लखनऊ से श्री रवीन्द्र प्रभात, जाकिर अली रजनीश,
बंगलौर से श्री प्रवीण पाण्डेय,
दिल्ली से श्री अविनाश वाचस्पति, श्री यशवंत सिंह, श्री हर्षवर्धन त्रिपाठी, श्री जय कुमार झा, श्री शैलेश भारतवासी, श्री इष्टदेव सांकृत्यायन,
रीवा से सुश्री वंदना अवस्थी दुबे,
मुंबई से सुश्री अनिता कुमार,
वर्धा से श्रीमती रचना त्रिपाठी,
मेरठ से श्री अशोक कुमार मिश्र,
रायपुर से श्री संजीत त्रिपाठी, डॉ. महेश सिन्हा,
पानीपत से श्री विवेक सिंह,
और इंदौर से सुश्री गायत्री शर्मा।
संगोष्ठी के संयोजक श्री सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी स्वयं हिंदी के स्थापित ब्लॉगर है.
व्यक्तिगत रूप में अनूप शुक्ल और सुरेश चिपलूनकर को छोड़कर कोई भी चिट्ठाजगत की टॉप 40 सक्रिय ब्लओ?गरों की सूची में नहीं है।
व्यक्तिगत रूप में अनूप शुक्ल और सुरेश चिपलूनकर को छोड़कर कोई भी चिट्ठाजगत की टॉप 40 सक्रिय ब्लओ?गरों की सूची में नहीं है।
अब आगे बढ़ा जाये। 9 अक्टूबर को ग्राफ़िक्स डिजाईनर का कोर्स किये हुये हैडर बनाने के उस्ताद ललित शर्मा की पोस्ट आई http://lalitdotcom.blogspot.com/2010/10/blog-post_09.html कि डेढ वर्षों से ब्लागिंग कर रहे हैं, सैकड़ों ब्लागर मित्रों से मिले हजारों के ब्लॉग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। लगता है कि इतने दिनों में भी ब्लॉगर होने की अहर्ताएं पूरी नहीं कर पाए हैं। शायद इसीलिए वर्धा के सरकारी ब्लॉगर सम्मेलन का आमंत्रण हमारे तक नहीं पहुंच पाया।
वहां ब्लॉगिंग तकनीक के जाने-माने हिन्दी ब्लॉगर Ratan Singh Shekhawat ने कहा… हमें पता ही अब आपकी इस पोस्ट से चला कि वर्धा में कोई सरकारी ब्लॉगर सम्मेलन आयोजित हो रहा है रेवड़ी अपनों को ही बांटी जाती है :)
वयोवृद्ध ब्लॉगर Mrs. Asha Joglekar ने कहा… सरकारी सम्मेलन है ना फिर किस बात का गिला है । सरकार का तो ये पुराना सिलसिला है।
ब्लॉग तकनीक की बारीकियाँ जानने वाले और साहित्य लेखक संजीव तिवारी .. Sanjeeva Tiwari जिन्होंने सैकड़ों ब्लॉगरों को प्रोत्साहन, सहायता व दिशानिर्देश दिया है, ने कहा… हमने तो आयोजक महोदय के ब्लॉग पर एवं फेसबुक में टिपियाये भी इसीलिये थे कि इस पहल से हमें भी 'विशिष्ठ ब्लॉगरों' की सूची में स्थान मिलेगा ... पर 15000 नामी गिरामी हिन्दी ब्लॉगरों में हमारी कौन पूछपरख, (वैसे भी हम सिर्फ क्षेत्रीय रंग प्रस्तुत करते हैं)सोंचकर हम चुप हो गए थे, जो सत्य भी है। ललित शर्मा के लिये उनका संदेश था कि वर्तमान परिस्थितियों में आप निर्विवाद रूप से हिन्दी ब्लॉगिंग में लगातार सक्रिय हैं और हरदिल अजीज हैं इस कार्यक्रम में आपको आमंत्रित नहीं किया जाना दुखद है।
ब्लॉगवाणी के संचालकों से घनिष्ठ संबंध रखने वाले की सासु मां निर्मला कपिला ने कहा… ऐसे लोगों को हमने ही तो ये अवसर दिया है। चलो उनको बजाने दीजिये अपने गाल खुद।
चिट्ठाचर्चा ब्लॉग में के एक सहभागी Ashish Shrivastava ने जब सफ़ाई देने की कोशिश की 'इसमे किसी को निमन्त्रण नही दिया गया था नामांकन आमन्त्रित किए गए थे' तो ललित शर्मा ने कहा…सभी को मेल भेजे गए हैं। इसका सबुत मेरे पास है। और ये आयोजक बताएंगे कि उन्होने किसे मेल भेजा है और किसे नहीं।
dhiru singh {धीरू सिंह} ने कहा…ऎसा एक हादसा इलाहबाद मे भी हुआ था करीब साल भर पहले सिर्फ़ कुछ स्वनाम धन्य ही आमन्त्रित थे।
अम्माजी ने तो झड़ी ही लगा दी वहाँ।
9 अक्टूबर को ही http://hindi-vishwa.blogspot.com/2010/10/blog-post_09.html पर बताया गया 'उदघाटन वक्तव्य देते हुए कुलपति श्री विभूतिनारायण राय जी ने कहा कि ...ब्लॉगिंग जगत में राज्य और राष्ट्र नियंत्रण से अधिक व्यक्गित आचार संहिता लागू होती है।' अब इसे क्या कहा जाये कि अनूप शुक्ल ने अध्यक्षीय व्यक्तत्व के विरूद्ध कह डाला कि ब्लॉगिंग की आचार संहिता की बात खामख्याली है। और इस बात को साबित करने के लिये वे हमेशा की तरह अपने व्यक्तिगत ब्लॉग की बजाये, ब्लॉग पर चर्चायों के लिये बने एक सामूहिक ब्लॉग का सहारा ले अपनी रिपोर्टनुमा बातें डालते रहे। वैसे भी ब्लॉगिंग में सर्वाधिक ऊधम मचाने वाला आचार संहिता से सहमत कैसे हो सकता है।
ललित शर्मा की 10 अक्टूबर वाली पोस्ट में एक ईमेल का चित्र दिया गया है जिसमें दिखता है कि 27 जुलाई को वह ईमेल सिद्धार्थ सहकर त्रिपाठी की व्यक्तिगत ईमेल से भेजा गया है व उत्तर भी उसी पर देने की बात की गयी है जबकि हिंदी विश्वविद्यालय का उसमें कोई सम्पर्क पता नहीं। मतलब कार्यक्रम सरकारी और सुचनायें मंगाये एक व्यक्ति! कोई समिति कोई समूह नहीं?
वहाँ 'उदय' ने कहा…खेदजनक है कि सब गुप-चुप ढंग से चल रहा है ... सार्वजनिक तौर पर प्रचार-प्रसार होता तो बहुत ही खुशी होती ... निर्मला कपिला ने कहा…ब्लाग जगत को शुरूआत मे ही गुटबाजी ने अपने कब्जे मे ले लिया है। कुछ लोग शायद अपने प्रचार प्रसार के लिये ही ऐसा कर रहे हैं। हमे तो कोई मेल नही मिली। हिन्दी ब्लॉगिंग में सक्रिय 5 वर्ष बिता चुके महेन्द्र मिश्र ने कहा…यह मीट सरकारी खर्च पर एक प्रान्त विशेष केलोगों के लिए आयोजित की गई है और यह राष्ट्रिय या अन्तराष्ट्रीय मीट कतई नहीं कहीं जा सकती है ..... इसकी सार्वजनिक सूचना नहीं दी गई.
बात सही भी है एक सरकारी शैक्ष्णिक कार्यक्रम की घोषणा न तो किसी समाचार पत्र में की गयी न ही किसी ऐसे ब्लॉगरों द्वारा प्रचारित प्रसारित किया गया जिनके ब्लॉग लोकप्रिय हैं। एक अन्जान से ब्लॉग के अलावा कहिं चर्चा नहीं दिखी इस कार्यक्रम की।
honesty project democracy ने कहा… आमंत्रण सबके लिए था। पहल ब्लॉगर को करनी थी। लेकिन वह भी नहीं बता पाये कि ईमेल कुछ खास लोगों को क्यों भेजी गई और कुछ को क्यों नहीं भेजी गई। छत्तीसगढ़ के ब्लॉगर सम्मेलन में विभीषण की उपमा पा चुके Sanjeet Tripathi ने कहा…आप ईमेल पर आमंत्रण का इन्तेजार करते बैठे रहे क्या? महेश भैया ने सीट बुक करवा ली अपनी और मेरी ट्रेन की , फिर अपन ने वहां सूचना दे दी, बस सारा खेला हो गया फिर तो... लेकिन बेचारे इतना नहीं बता पाये कि उन्हें ईमेल मिली थी कि नहीं। अम्मा जी ने यहाँ भी कई प्रश्न खड़े किये और फार्मूला बताए कई चुटकियाँ भी लीं
क्रमश: जारी है पोस्तमार्टम
अगला मामला कुछ घंटों में
सभी ब्लॉगरों के नाम के आगे पीछे श्री/ सुश्री व जी लगा हुआ समझा जाये।
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