13 October, 2009

हिंदी ब्लोगिंग में जनमदिन और प्रोफाईल की रचना हटाने के बेमतलब हन्गामे का सच

पिछले दिनों अपनी प्रोफाइळ को छुपाकर कर हिंदी ब्लोगिंग में अपने कमेंट देने वाले और अपने एक ब्लोग को हटाकर कर जनमदिन हटवाने आयी ब्लोगर का कहना था कि वह कहीं अपनी पहचान नहीं रखना चाहती।लेकिन अपने ही हाथों से उन्होंने जो अपना,अपनी फर्म का,अपने पते का,अपने इमेल का,अपने फोन का,अपने घर का,अपनी हलचलों का,अपने ब्लोग का ब्यौरा इंटरनेट पर फैला रखा है उसे कैसे नकारेंगे।
मुझ पर कोई अंगुली उठाये उसके पहले जान ले कि यह सब इंटर्नेट पर है।कोई भी देख सकता है मैंने भी देख लिया।मैंने कोई गुनाह नहीं किया।मुझे तो शाबासी मिलनी चाहिये कि सभी लिंक एक जगह रकह दिये।

यहां उनका पूरा पता,फोन,नाम,ईमेल वगैरह देखिये।देख लें सबै अन्ग्रेजी में है हिंदी की कोई लिंक नहीं


http://www.tradeindia.com/Seller-1347999-1393173-115-BRANDING/Textile-Dyers-Processors-Printers/RACHNA-DESIGNS.html









LinkedIn पर देखिये
http://www.linkedin.com/pub/rachna-singh/10/875/b02



यहां 3रे नम्बर पर देखिये

यहां 4थे नम्बर पर देखिये जानकारी
http://www.exportersindia.com/indian-services/textile.htm

यहां 34वें नम्बर पर देखिये
http://www.hepcindia.com/texstyle_partlist.html

यहां 10वें नम्बर पर देखिये
http://www.texnett.com/cgi-bin/category/displaycat.pl?page=1&cattype=Consultants-General&catsubtype=Q-T



http://74.125.93.132/search?q=cache:epkK4Z-lcBcJ:www.asia.ru/en/Clear/SaveCompanyProduct%3Fcompany_id%3D50840+%22B-+24,+Ramprastha%22&hl=hi&gl=in


जब इतना कुछ खुद ही फैला रखा है अन्ग्रेजी वाले इन्टरनेट पर तो हिंदी ब्लोगिंग पर इतना हन्गामा क्यों मचाया हुया है? आखिर क्या हासिल होगा हिंदी ब्लोगिंग को बदनाम कर? क्या आपको नहीं लगता पिछले दो तीन दिनों में जो कुछ हुया वह बेमतलब था हिंदी ब्लोगिंग को बदनाम करने के लिये?सिर्फ एक ब्लोग पर उनकी उमर क्या लिख दी गैई ...

02 October, 2009

ब्लॉगवाणी के चरित्र पर कुछ गंभीर बातें

यहाँ पर मैं सिलसिलेवार, पिछले कुछ दिनों में हुई घटनाओं के बारे में कुछ बताना चाहता हूँ। पूरी बात शुरू से बता रहा हूँ क्योंकि यह सार्वजनिक महत्व का विषय है। सार्वजनिक महत्व का विषय क्यों है, वह भी बताऊँगा। ...उनकी इच्छा है, मेरा चिट्ठा रखें या न रखें। मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। न रखें तो शायद उनके लिए बेहतर होगा, क्योंकि मैं अनैतिक चीज़ों का खुलासा यहाँ करता ही रहूँगा। मुझे पता है कि यदि ब्लॉगवाणी से संबंध रहे तो ऐसे प्रकरण दुबारा होंगे, क्योंकि यह दोष संचालन का है। या तो मुख्य संचालक को पता ही नहीं है कि चल क्या रहा है, या सब संचालक की जानकारी में रहते हुए हो रहा है। मुझे ऐसे स्थल पर आस्था नहीं है। मुझे नहीं लगता कि वह मेरे लिए उपयोगी होगा। इतना ही नहीं मुझे तो लगता है कि इससे हिंदी जाल जगत को बहुत बड़ा नुकसान होगा। हाँ. यदि मेरे ब्लॉगवाणी के साथ कोई आर्थिक संबंध होते या वित्तीय रूप से उनपर आश्रय होता तो यह ज़िल्लत ज़रूर झेलता। पर मुझे यह करने की कोई ज़रूरत नहीं है।

आपको कुछ आपत्तिजनक लगा हो तो बताएँ। मैं खुलासा दूँगा, या आपसे माफ़ी माँगूँगा और अपने आपको सुधारने का यत्न करूँगा। ... हाँ, यदि किसी अन्य नें मेरे दुर्व्यवहार का ब्यौरा दिया हो तो उसके बारे में पहले एक बार मुझ से पूछ कर जाँच लें, खुलासे या गलती मानने का मौका दें, फिर मेरे बारे में फैसला करें। आप यदि निजी पसंद या नापसंद के लिए रखना चाहें तो रखें। ...क्या मैंने गाली गलौज की है? ब्लॉगवाणी के संचालक यदि इतने अच्छे हैं तो वे इसका विरोध क्यों दर्ज नहीं करते? इस बात का आश्वासन क्यों नहीं देते कि ऐसा दुबारा नहीं होगा।

ब्लॉगवाणी द्वारा संस्थागत तरीके से फ़र्ज़ी पहचान बना के लोगों को गुमराह करना, और कई बार टिप्पणियों में गालीगलौच होने पर भी कोई आधिकारिक विरोध न होना, उसके बजाय उसको संरक्षण देने से है। यदि किसी संस्था का यही काम करने का ढंग हो, तो मैं उससे संबद्ध न रहना चाहता हूँ ... हम क्यों झेलें? क्या आप घर और काम से समय निकाल कर इसलिए अंतर्जाल पर आते हैं कि ज़लील किए जाएँ?

मैं भी पंजाब में रहता हूँ, गालियाँ तो मुझे भी आती हैं। ... सभी आक्षेप ब्लॉगवाणी के संचालन प्रणाली पर हैं, किसी व्यक्ति विशेष पर नहीं। कृपया टिप्पणी करें तो ब्लॉगवाणी की संचालन प्रणाली पर करें, व्यक्तियों पर नहीं।

मैंने कुछ मित्रों से पूछा, कि क्या हो सकता है, कि यह चिट्ठा ब्लॉगवाणी पर दिखना बंद हो गया... उनके स्थल पर डाक पता था, सो लिखा कोई जवाब नहीं आया। इस बीच कुछ लोगों ने इस बारे में प्रविष्टियाँ लिखीं। ...कुछ ने ब्लॉगवाणी से जवाबदेही की माँग की। ... पुष्टि हो गई कि यह तकनीकी खराबी की वजह से नहीं ... बल्कि जानबूझ कर ... पता चला कि {नूर मोहम्मद खान बनाम मैथिली गुप्त बनाम धुरविरोधी}, अभिनव, और सिरिल मैथिली गुप्त एक ही परिवार के सदस्य हैं और तीनो ब्लॉगवाणी से संबद्ध हैं। साथ ही अरुन अरोरा नामक एक सज्जन भी ब्लॉगवाणी से संबद्ध हैं। इनमें से कौन ब्लॉगवाणी का वास्तविक संचालक है, और किनकी क्या क्या ज़िम्मेदारियाँ हैं, यह मुझे ज्ञात नहीं।... अच्छा हुआ जो इस घटना क्रम से यह पता चल गया। यह सब तो थे तथ्य।

ब्लॉगवाणी के संचालकों को विरोध था तो ... कई छद्म नामों से क्यों ऐसा किया? यह अनैतिक है। क्या उन्हें इसके लिए क्षमा नहीं माँगनी चाहिए, क्या यह वादा नहीं करना चाहिए कि ऐसा वे पुनः नहीं करेंगे? पर अगर वादा किया भी तो क्या गारंटी है कि ऐसा फिर से नहीं होगा। क्या ब्लॉगवाणी के संचालक को मालूम था, पर उन्होंने कुछ कहना या करना ज़रूरी नहीं समझा? हिंदी जाल जगत के बाशिंदे क्या अब इस प्रकार के व्यवहार के आदी हो चुके हैं? क्या हम सबको यह सहज व स्वाभाविक लगता है? क्या ऐसे व्यक्ति का सामाजिक बहिष्कार नहीं होना चाहिए? जो संस्था ऐसे व्यक्ति को पाल रही है क्या उसका सामाजिक बहिष्कार नहीं होना चाहिए?

जिस स्थल की चिट्ठे शामिल करने और निकालने का कोई हिसाब ही न हो, और जो इस प्रकार की दूषित नीतियाँ अपनाता है, क्या उसपर भरोसा करेंगे? क्या आप उसको मान देंगे? सिर्फ़ इसलिए कि वह हिंदी में है? अब तक मैं यह मान के चल रहा था कि यदि कोई हिंदी में अंतर्जाल पर कुछ शुरू करता है तो वह सुचरित्र ही होगा। पर पता चल गया कि ऐसा नहीं है। मैं यदि किसी स्थल या परियोजना से जुड़ूँगा तो इस प्रकार की आचार संहिता के अधीन ही

पंगेबाज तो इंटरनेट के सर्टीफाईड बंदर हैं ... ये आपको लाख गाली दें, आपका चरित्र हनन करें, फर्जी नाम यहाँ तक की खुद आपके ही नाम से टिप्पणी करें पर आप इनका कुछ उखाड़ नहीं सकते … अगर ये ही चिट्ठाजगत के भद्रपुरुष चिंतक हैं तो आप अकेले क्या कर सकेंगे। -देबाशिष

एग्रीगेटर संचालक चाहे वे कोई भी हो अपनी गरीमा बनाए रखे और इसके लिए जरूरी कदम उठाए. -संजय बेंगाणी

क्या किसी की छ्द्म पहचान को बेनक़ाब करना नैतिक है..? -अभय तिवारी

मैं छद्म नाम से ब्‍लॉगिगं करने में संतोष पाता हूँ। ...आप लोगों को जासूसी करने के लिए उक्‍साकर कोई नैतिकता का विमर्श नहीं खड़ा कर रहे हैं। हमारा यह सैद्धांतिक पक्ष रहा है कि बेनाम या छद्म नाम से ब्‍लॉगिंग करना ब्‍लॉगर का हक है। -मसिजीवी

एग्रीगेटर संबंधी विवादों के सिलसिले में मेरे पिछले अनुभव ने सिखाया कि समय और ऊर्जा को इन कामों में खपाना बेवकूफी ही है। ...
हमारे कई चिट्ठाकार साथी सच्चाई और नैतिकता से अधिक अपने पक्ष या गुट के हिसाब से अपनी राय बनाते-व्यक्त करते हैं। सच्चाई और नैतिकता लोकतंत्र के बहुमत की मोहताज नहीं होती -सृजन शिल्पी
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सभी पाठक ध्यान दें --- यहां लिखा गया कोई भी शब्द मेरा नहीं है

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हो सकता है मेरे इस ब्लॉग को ब्लॉगवाणी से हटा दिया जाये। यदि ऐसा होता है तो आप इसे चिट्ठाजगत एग्रीगेतर पर देख सकते हैं या इसे ईमेल में प्राप्त करने का लिंक आपको इसि पोस्ट पर दे दिया जायेगा