28 December, 2008

चन्द्रयान के अलावा भिलाई का एक और संबंध चन्द्रमा से, जो छुपाया गया

भिलाई के युवक द्वारा चंद्रयान डिजाइन करने की ख़बर तो आपको मेरे शहर से सटे भिलाई के ब्लॉगर बी एस पाबला जी ने दे ही दी है। अभी अभी जब ख़बर देखी कि चंद्रयान ने चांद की सतह पर प्रचूर मात्रा में लौह अयस्क की मौजूदगी का पता लगाया है। यह लौह अयस्क चांद के पूर्वी बेसिन के पश्चिमी भाग में मौजूद है तो मुझे पाबला जी की याद फिर हो आयी। उनहोंने एक जानकारी आपसे छिपायी है कि उनके पुत्र के नाम पर चन्द्रमा पर कथित रूप से प्लाट है। जिसे हम आप जायदाद कह सकते हैं। अब लोग चाहे कुछ भी कहें, पूर्व भारतीय राष्ट्रपति अब्दुल कलाम, दो भूतपूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति, नासा के अनेकों वैज्ञानिक, हौलीवुड के कई सितारे जब चन्द्रमा पर जमीन खरीद कर बैठे हों, तो पाबला जी के सुपुत्र ने कौन सा बेवकूफी वाला कार्य किया है, जो वह छिपा रहे हैं। विवरण यहाँ देखा जा सकता है और एक समाचार पात्र कि ख़बर यहाँ देखी जा सकती है।

इसकी याद आने की एक और वजह यह भी है कि जमीन के कागजातों में यहाँ लिखा गया है कि चन्द्रमा की सतह के नीचे 4 किलोमीटर व ऊपर 10 किलोमीटर तक पाये जाने वाले ठोस, द्रव, गैस पर उस जमीन के मालिक का हक़ होगा!

तो उनको बधाई देना मत भूलियेगा।

20 December, 2008

ज्ञानदत्त जी की पत्नी पिटाई पोस्ट और महिला ब्लॉगर्स के बहाने

एक व्यवसायिक यात्रा से अभी-अभी लौटा हूँ और अपनी एक मासूम शरारत भरी टिप्पणी पर अनेकों को अपनी दाढ़ी में तिनका ढ़ूढ़ते हुए देख मुस्कुराने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहा हूँ। ज्ञानदत्त जी ने तो एक पोस्ट ही बना डाली है, जैसा कि वे लिखते हैं कि जोड़-तोड़ कर पोस्ट बनाई जाती है!

लौटते समय सोच रहा था कि आप लोगों से एक मुद्दे पर अपील करूँगा। सो कर रहा हूँ कि महिला आयोग द्वारा  महिलाओं के लिए कृषि क्षेत्र में राष्ट्रीय नीति का मसौदा तैयार किया जा रहा है, जिसके लिये kusummishra@nic.in पर सुझाव मांगे गये हैं। आप से, खास तौर पर महिला ब्लॉगर्स से,महिला समर्थकों से, अपील है सुझाव अवश्य दें। इस पर मुद्दे पर आपकी टिप्पणी भी मायने रखती है।

ज्ञानदत्त जी की नयी-पुरानी पोस्ट के बारे में फुर्सत पाते ही कुछ लिखने की कोशिश करूँगा।

03 December, 2008

लीजिये दाउद का पता, ठिकाना, पासपोर्ट नम्बर आदि

मैं मूरख एक बार फिर इंटरनेट की दुनिया में भटकते हुए जा पहुंचा ऎसी जगह जिसके नाम से ही अपराधियों, नागरिकों के कान, रोंगटे और ना जाने क्या क्या खड़ा हो जाता है, कहाँ कहाँ पसीना आने लगता है। इस जगह पर दाउद के बारे में वह सभी जानकारियाँ सहज उपलब्ध हैं जिन्हें सीमापार वाले नकारते रहे है। जब एक सर्वमान्य अंतर्राष्ट्रीय पुलिस संगठन सारे सबूत दे रहा है तो सिर्फ भारत के देने ना देने से क्या फर्क पङता है?

वो जगह है इंटरपोल आप जाना चाहें तो सीधे क्लिक कर इस जगह जाकर सारी जानकारी ले सकते हैं। अगर कोई डर/ फिशिंग/ फ्रॉड नज़र आ रहा हो तो गूगल में सर्च करें interpol , पहले ही लिंक में मिल जायेगा। आगे बढें Fugitives > Notices > Interpol - United Nations special Notices में आपको ढेरों अपराधी मिलेंगे। इन्हीं में है कासकर, दाउद इब्राहिम या शेख, दाउद हसन और उसका पूरा कच्चा चिट्ठा। दिक्कत हो तो मुख्य पृष्ठ पर ऊपर दांयें सर्च का सहारा लें।

वरना सीधे सीधे यहाँ लिंक तो आपको दे ही रहा हूँ।

01 December, 2008

शहीद के पिता ने मुख्यमंत्री, गृह मंत्री से कहा "कुत्तो निकल जाओ यहां से।”

मज़बूरी है, परिवार के साथ बैठा हूँ, इसलिए अपने आपको नियंत्रित कर रखा है,  वरना इतनी गालियाँ देने को मन कर रहा है कि …
 
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मुम्बई में ताज होटल में आतंकवादियों से संघर्ष में शहीद हुए युवा मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के पिता के. उन्नीकृष्णन ने आज केरल के मुख्यमंत्री तथा गृहमंत्री को अपने घर से निकाल दिया और उनसे मिलने से इनकार कर दिया। दुख और गुस्से से बौराए पिता ने पहले तो घर का दरवाजा ही नहीं खोला और आधे घंटे तक मुख्यमंत्री अच्युतानंद और उनके गृहमंत्री अपने सुरक्षा कर्मियों और साथ आए अन्य लोगों के साथ बाहर इंतजार करते रहे। 

जब श्री उन्नीकृष्णन के सब्र का बांध टूट गया तो वे झपटते हुए बाहर आए, उपस्थित पत्रकारों से कहा “चलाओ कैमरा” और फिर सबके सामने दोनों मंत्रियों से भड़कते हुए कहा “कुत्तो निकल जाओ यहां से।” 

मेजर संदीप की शहादत पर केरल सरकार ने अब तक चुप्पी साध रखी थी। यहां तक कि शनिवार को उनके अंतिम संस्कार के समय भी केरल सरकार की ओर से एक शब्द भी शोकस्वरूप नहीं कहा गया था। श्री के. उन्नीकृष्णन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। विभिन्न एजेंसियों द्वारा जारी खबरों में यह भी कहा गया कि उन्होंने यह तक कह डाला कि अगर उनके बेटे की मौत पर राजनीति की गई तो वे आत्महत्या कर लेंगे। 
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घर से बाहर जा रहा हूँ, ऐसी जगह जहाँ जी भर कर अपनी भड़ास निकाल सकूँ।

30 November, 2008

आया, आया, आया, मुंबई के बाप के भतीजे का, पहला बयान आया

मुम्बई किसी के बाप की नहीं कहने पर पुलिस उच्चाधिकारी को समय आने पर उचित 'प्रसाद' दिए जाने की चेतावनी देने वाले राज ठाकरे ने, मुंबई पर हुए अब तक के सबसे बड़े आतंकवादी हमले के चार दिन बाद अपनी चुप्पी तोड़ते हुए राज्य की कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस सरकार की मुंबई के दरवाजे सबके लिये खुले रखने की नीति और शासन में व्याप्त भ्रष्टाचार को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है।

इन महाशय को अब पता चला है कि मुंबई समेत पूरे राज्य में ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार का बोलबाला है। इसके चलते यहां कौन लोग आते हैं तथा कहां से आते हैं उस पर किसी का ध्यान नहीं। इनको पक्के तौर पर गिनती भी याद है कि मुंबई को जलापूर्ति करने वाली पाईपलाइन से सटे चालीस हजार झोपड़े हैं। इससे वे सवाल उठाते हैं कि महाराष्ट्र पुलिस बाहर से आने वाले लोगों पर कैसे नजर रख सकती है। उनका कहना है उनकी अपनी नाजों से पाली पोसी पूरे भारत में अनोखी मुंबई में चुंगी नाकों से वाहनों को जिस तरह बिना जांच के या कुछ ले देकर छोड़ा जाता है। उससे कोई शहर में परमाणु बम तक ला सकता है।

ये महाशय दूसरे ग्रह से आए हैं और इन्हें बहुत गुस्सा आ रहा है कि यहां ड्राइविंग लाइसेंस से लेकर राशनकार्ड तक सब आसानी से मिल जाता है। ऐसे में पाकिस्तान या बंगलादेश से कोई आतंकवादी आकर पड़ोसी बन जाए तो कैसे पता चलेगा। इनको अपील करना भी आता है जिसमें कहते हैं कि इस हमले के बाद कम से कम कठोर कदम उठाये जायें और कड़े कानून बनाये जाएँ। अपनी ओर उंगली उठाने की कोशिश करते हुए आरोप भी लगाते हैं कि राहुल राज प्रकरण हो या माले गांव बम कांड पुलिस और आतंकवाद निरोधक शाखा (एटीएस) का मनोबल तोड़ा जाता है फिर भी उनसे अधिक कार्यक्षमता की उम्मीद की जाती है। अपने बयान के आख़िर में कहते हैं एक तरफ उन्हें बदनाम किया जाता है और उनके शहीद होने पर... ऐसा कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी होना संभव नहीं है ...कहकर श्रद्धांजलि दी जाती है।

तो यह था ज़नाब मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख और गृह मंत्री आर आर पाटिल को लिखे पत्र में, आमची मुम्बई के बारे में इनके बयान का निचोड़।

आगे आगे देखिये होता है क्या।

04 November, 2008

पुरुष दर्प को सहलाती आज़ाद नारी उर्फ़ आज़ादी बरकरार रखने के लिये अस्मिता को दाँव पर लगाती नारी

जैसा कि मैंने पहली पोस्ट (पुरुष दर्प को सहलाती आज़ाद नारी) में लिखा था कि यदि उचित प्रतिसाद मिला तो इस पोस्ट के बाक़ी अंश फिर कभी। क्योंकि निश्चित ही राजम नटराजन पिल्लै का यह लेख तो बहुत लंबा हो गया था। आपसे निवेदन है कि इस कड़ी के पहले की पोस्ट पर एक नज़र जरूर डालें ताकि तारतम्य बना रहे। उसी पोस्ट का अगला हिस्सा है यह अंश:

पुरुष दर्प को सहलाती आज़ाद नारी
-राजम नटराजन पिल्लै

‘अबला’ को सहायता देकर आर्थिक रूप से पराधीनता से राहत दी गयी और उसके लिये शिक्षा दीक्षा, रोज़गार मुहैया किये गये। राजनैतिक स्वतंत्रता की लड़ाई में उनकी भागीदारी अनायास हो गयी। पहली बार लोकतांत्रिक शासन-प्रणाली स्वीकार करने वाले राष्ट्र ने बड़ा प्रगतिशील संविधान भी स्वीकार कर लिया और लिंग तथा जनम पर आधारित विषमतायों को घोषित रूप से गैरकानूनी बना दिया। सभी क्षेत्रों में स्त्रियों ने प्रवेश किया, कामयाब हुईं और अपनी अस्मिता को सुदृढ़ बनाती गयीं, और यहीं से समस्या उठ खड़ी हुई उनकी सार्वजनिक जीवन की, अश्लीलता की, गैर सामाजिक चरित्र की, परिवार के टूटने की। एक दिलचस्प तथ्य यह है कि पिछले दस वर्षों से स्त्री के चरित्र स्खलन की कोई बात नहीं करता और न ही समाज के अध:पतन की बात करता है, पर निश्चित है कि स्त्री की फैशनपरस्ती, चिंता और सरोकार का केंद्र है और चिंता इस बात पर है कि औरत ने अपनी अस्मिता की रक्षा के लिये आज़ादी चाही थी और अब वह आज़ादी बरकरार रखने के लिये अपनी अस्मिता को दाँव पर लगा रही है।

बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध से हावी हो रहे विभिन्न क्षेत्रों के भूमंडलीकरण और दैनंदिन के जीवन को प्रभावित कर रहे बाज़ारवाद ने उपभोक्तावाद को प्रोत्साहन दिया। धन, जो किसी समय हाथ का मैल था, अब इतना महत्वपूर्ण बन गया है कि उसे पाने के लिये कितने भी मैल में धंसने के लिये लोग तैयार हैं। नीति-अनीति की दीवारें ढह गयी हैं, गलत सही की सरहदें मिट गयीं हैं। स्त्री-मुक्ति की विचारधारा के विश्वव्यापी आंदोलन ने पुरूष प्रधान विषमतामूलक समाज व्यवस्था को बदलने के लिये दशकों, सदियों से पूरी शिद्दत और ईमानदारी से प्रयास किया था, पर नव उपनिवेशवादी वैश्विक पूँजी साम्राज्य ने एक अनूठे ढ़ंग से स्त्री को मुक्त कर दिया। सर्वहारा से सर्वजयी बना दिया। अब वह स्वयं अपने को पण्य, वस्तु, ‘जिंस’ बनाने के लिये आज़ाद है। वह प्रेमचंद के उपन्यास की मज़बूर हो कर ‘दालमंडी’ में बैठने वाली नायिका नहीं रही, चतुरसेन शास्त्री की, सामाजिक व्यवस्था की शिकार ‘वैशाली’ नहीं रही। अब वह बड़े लाड़-प्यार से माता-पिता, भाई, राष्ट्रवासियों से प्रशंसित, स्वीकृतमिस वर्ल्ड’, मिस यूनिवर्सहो गयी है। स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी ने अबला भारतीय नारी को जागृत करते हुये कहा था कि उन्हें सावित्री, सीता और दयमंती को अपना आदर्श मानना चाहिये और इन स्त्रियों की महता की स्वीकृति के रूप में ही हमारे यहां लड़कियों के नाम सावित्री, सीता, दयमंती रखे जाते रहे। पर अब ये नाम दकियानूसी माने जाते हैं। अब इन दस-पंद्रह वर्षों में लड़कियों के नाम सुष्मिता, ऐश्वर्या, करिश्मा रखे जा रहे हैं।

स्त्री मुक्ति की प्रगतिशील धारा निश्चित ही इससे कुंठित हुयी है। कवि प्रतापराव कदम ने अपनी कविता ‘वह सहला रही है पुरूष दर्प’ में बहुत सटीक कहा है। सौंदर्य प्रतियोगिता में, देह बनी औरत क्या जानती है, देह के अलावा भी है, वह, … क्या जानती है ब्यूटी कॉंटेस्ट में, इतराने वाली औरत, जनमने से पहले ही ही, मारी जा रही है वह …, क्या जानती है, कुछ ही अंकों से पिछड़ने वाली औरत, सहला रही है, उसी पुरूष दर्प को, जो मानता है, वही है सृष्टि का नियता!’ लड़कियों की, स्त्रियों की फैशन-परस्ती अपने आप में चिंता का विषय नहीं होना चाहिये। भारत के लिये भीश्रंगारकोई अपूर्व घटना नहीं है। कालीदास से लेकर विद्यापति तक और फिर बिहारी, देव से लेकर पद्माकर तक, सभी रीति/ श्रंगारकालीन कवियों ने स्त्रियों के नख-शिख सौंदर्य और श्रंगार का ही वर्णन किया है। सम्पूर्ण भारतीय चित्रकला, नृत्यकला, संगीत, स्त्री की बनावट और सजावट का ही द्रुत/ विलंबित वर्णन करती है, तो फिर आधुनिक लड़कियों की साज-सज्जा, पोशाक चिंता का विषय क्यों बनना चाहिये? रही बात कम कपड़े पहनने की, तो हमारे सारे बौद्धयुगीन भित्तिचित्रों में अंकित स्त्रियां तो इनसे भी कम क्या, न्यूनतम कपड़े पहने हुए हैं।

वर्तमान लड़कियों का, स्त्रियों का बनाव-श्रंगार इसलिए आशंका और डर पैदा करता है कि वह केवल मूलभूत आवश्यकतायों की पूर्ति के लिए नहीं है, वह एक प्रदर्शन है अपनी सत्ता का, धन का, मिल्कियत का, पूँजी का। स्त्री का शरीर उसकी पूँजी है। वह अपनी पूँजी की मार्केटिंग कर रही है, वह ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफे के लिए उस एएक बाज़ार में ऊँचे से ऊँचे दामों में बिकने वाली कमोडिटी के तौर पर रख रही है। इससे भी आगे कहा जा सकता है कि आज आधुनातन फैशन के अनुरूप अपने को प्रस्तुत कर औरत, बहुआयामी खुशी अर्जित कर रही है। उसका मेकअप, उसके कपड़े, उसका मोबाईल एक स्टेटमेंट है, बयान है, वह एक घोषणा है, उसकी आज़ादी की, उसकी स्वायत्ता का, उसकी अपना स्वामी स्वयं होने की।

परम्परा की दुहाई देते हुए आँख मूंदकर मीडिया को गरियाने या फैशन मात्र को अपसंस्कृति घोषित कर देने से आशंकाओं का समाधान नहीं हो जायेगा। आशंका इस बात की है कि समाज की सर्वप्रथम बुनियादी इकाई परिवार को, यह नुकसान पहुँचाती है, उससे आगे सामाजिक अर्थव्यवस्था को अस्त-व्यस्त करती है और सबसे अहम बात कि यह एक अंतहीन ‘चूहा दौड़’ को बढ़ावा देती है, जिसमें अंतत: सभी को ‘चूहा’ ही बने रहना है। यह कहना आज तर्कसंगत नहीं लगता कि औरतों को सारे धर्म-कर्म निभाने चाहिए, यह भी कि वे ही मातृरूपा हैं, इसलिए उन्हें ही त्याग करते रहना चाहिये।

‘नारी, तुम केवल श्रद्धा हो’ यह संबोधन आज वंचना और प्रवंचना का द्योतक लगता है, इसलिए इतना ही कहना सामयिक और उपयोगी लगता है कि 21वीं सदी के संत्रास्पूर्ण वैश्विक वातावरण में अपने मानसिक संतुलन को बनाये रखना सबसे बड़ा सहारा होता है। इसलिए स्त्री को भी अस्मिता और अस्तित्व की इस अंतर्द्वंदमयी शिति में निरंतर संतुलन बनाये रखने का प्रयास करना चाहिये। फैशन निश्चित ही एक ‘घोषणा’ है, पर उसका कथ्य क्या हो? इस बारे में प्रत्येक स्त्री को, उससे संबंधित पुरूष को, छोटी से छोटी सामाजिक इकाई को, अपने विवेक और अंतर्मन को साक्षी रखकर स्वयं निर्णय करना होगा।

-राजम नटराजन पिल्लै लिखित लेख, नंदकिशोर नौटियाल जी द्वारा संपादित, साप्ताहिक पत्र 'नूतन सवेरा' में प्रकाशित। इसके सलाहकार सम्पादक डॉ कन्हैयालाल नंदन हैं।

28 October, 2008

क्या शेयर बाज़ार सच में अस्थायी रूप से बंद होने जा रहे हैं?

7 सितम्बर, 2006 को, न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में एक अर्थशास्त्र का प्रोफेसर, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में अर्थशास्त्रियों के सामने खड़ा था और उसने घोषणा की, कि आने वाले महीनों और वर्षों में, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए, जीवन-में-एक-बार वाले अंदाज़ में, तेजी से गिरावट की संभावना होगी और अंततः एक गहरी मंदी।

उनका कहना है कि (Dow) को अभी भी नीचे जाने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना है. यह 7,500, 6,000, 5,000? लेकिन मुझे लगता है कि हमें पता नहीं है। मुद्रास्फीति के समायोजन के लिए पाँच साल में
Dow आज जहाँ है, वहाँ से नीचे होने जा रहा है। लंदन में पिछले गुरुवार, उन्होंने कहा कि बचाव के लिए शेयर बाज़ारों को जल्दी ही लंबे समय, एक सप्ताह के लिए बंद करना पड़ सकता है(क्या हुआ? अगले दिन न्यूयॉर्क और मॉस्को में ट्रेडिंग बंद हो गयी थी)

अभी तक इन सभी भविष्यवाणियों का कुछ सच सामने आया है। कुछ लोग अब हँस रहे हैं।

इनके साथ ही उच्च पदस्थ, करीब 10 लोगों ने इस मंदी को आते देखा था।

यदि उत्कंठा बढ़ रही हो तो और पढ़िये

Dr. Doom
Published: August 15, 2008
On Sept. 7, 2006, Nouriel Roubini, an economics professor at New York University, stood before an audience of economists at the International Monetary Fund and announced that a crisis was brewing.

In the coming months and years, he warned, the United States was likely to face a once-in-a-lifetime housing bust, an oil shock, sharply declining consumer confidence and, ultimately, a deep recession.

He laid out a bleak sequence of events: homeowners defaulting on mortgages, trillions of dollars of mortgage-backed securities unraveling worldwide and the global financial system shuddering to a halt.

Dr. Doom forecasts depression
Published: October 27, 2008
Peter D. Schiff, an extreme bear who correctly foresaw the U.S. stock-market slide, the home mortgage meltdown and the credit crunch, still sees plenty of doom and gloom ahead.

I think [the Dow] still has a long way to go down. Is it 7,500, 6,000, 5,000? I don't know, but I don't think we're there yet.
Adjusted for inflation, I think in five years the Dow is going to be below where it is today.

Stock markets may soon have to shut as long as a week
Published: Oct 27, 2008
In London last Thursday, he predicted that hundreds of hedge funds will go bust and stock markets may soon have to shut – perhaps for as long as a week – in order to stem the panic selling now sweeping the world.
What happened? The next day trading was briefly stopped in New York and Moscow.

Nouriel Roubini predicted a global financial meltdown
Published: Oct 28, 2008
While the economic sun was shining, most other economists scoffed at Roubini and his predictions of imminent disaster. They dismissed his warnings that the sub-prime mortgage disaster would trigger a financial meltdown.

They could not quite believe his view that the US mortgage giants Fannie Mae and Freddie Mac would collapse, and that the investment banks would be crushed as the world headed for a long recession.

Yet all these predictions and more came true. Few are laughing now
Read: http://www.theaustralian.news.com.au/business/story/0,28124,24561416-30538,00.html

'Dr. Doom' says markets may face temporary closures
Published: October 23, 2008
Economist Nouriel Roubini, who predicted much of the financial catastrophe that has unfolded worldwide over the last year, now says governments may have to temporarily close markets as a way to try to halt another massive wave of selling.

10 people, who saw it coming
Published: October 26, 2008
IT'S hard to forecast the future, especially in the volatile world of stockmarkets. Which is why when it crashed, it left many people in shock and panic. Surely no one could have predicted the financial meltdown of recent weeks?

Well, actually, they did. Here are 10 people, according to The Times, who saw it coming

24 October, 2008

पंकज अवधिया जी जैसे हजारों-लाखों होंगे हमारे देश में

पंकज अवधिया जी को पता नहीं क्या जवाब मिलेगा उनके प्रश्न का लेकिन मेरे मन में एक बात आयी कि ऐसे ही पता नहीं कितने ही लोग मन मसोस कर रह जाते होंगे या जी भर कर गालियाँ देते होंगे मोबाइल कंपनियों को। मेरा भी यही अनुभव रहा है इन्हीं 9827019909, 9827019900, 9827019902, 9827019907, 9827019905, 9827023514 नंबरों का। जो यहाँ छत्तीसगढ़ में Smart के नाम से चल रहे रिलायंस कम्युनिकेशन के GSM नेटवर्क के नम्बर हैं।

कानूनी पचड़ों में पड़ने से बेहतर है कि अपना बचाव खुद ही किया जाये। इसी सिलसिले में, मैं अपने Reliance GSM नेटवर्क के Smart कनेक्शन वाले के लिये भारत में अजंता घड़ी बनाने वालों की ओर से प्रस्तुत किये गये एक मोबाईल का इस्तेमाल कर रहा हूँ। जिसका मॉडल नम्बर A-1900 है और जुलाई 2008 में कीमत , दुकानदार ने मात्र 1500 रूपये लगायी थी। इसकी एक खूबी से तो मैं पूर्णतया: संतुष्ट हूँ। खूबी यह है कि इस हैण्डसेट का उपयोग करते हुये, आने वाली कॉल्स के अधिकतम 10 नम्बरों को काली सूची (Blacklist) में डाला जा सकता है।

जिन नम्बरों को कालीसूची में डाला गया है, यदि वे आपको कॉल करेंगे तो उन्हें लगभग Busy tone से मिलती-जुलती आवाज़ सुनायी देगी, चाहे जितनी बार भी कॉल आये। आपको आभास भी नहीं होगा कि किसी की कॉल आयी भी है। हाँ, बाद में एक नज़र डालते ही पता चल जाता है कि किसकी कॉल bounce हुयी थी। ज़रूरत पड़े तो किसी भी नम्बर को काली सूची से कभी भी हटाया जा सकता है, किसी दूसरे नम्बर को जोड़ा जा सकता है। मैनें उपरोक्त वर्णित सभी नम्बरों को Black listed किया हुया है और शान्ति से इस मोबाईल का इस्तेमाल जारी रखे हुये हूँ।

ये बात तो थी एक entry level mobile की। अपने BSNL नम्बर पर, मैं O2 Mini ब्राण्ड का Pocket PC उपयोग में लाता हूँ। इसमें एक 100-175 KB का Software मेरे सुपुत्र द्वारा स्थापित किया गया है, जिसका नाम ही SmartBlock है। उसकी खूबियों में: खास समयावधि में या हमेशा के लिये चाहे-अनचाहे कॉल्स SMS को Blacklist करना, मीटिंग मोड में रखे जाने पर खुद ही SMS कर कॉल करने वाले को सन्देश भेजना, ब्लॉक किये गये सभी SMS कॉल का इतिहास रखना, wildcard नम्बरों का समर्थन- जैसे 022*- मुम्बई से आने वाली सभी कॉल को रोकना शामिल है। इस Software की बदौलत मैं कितने ही Telemarketing जैसी कॉल SMS से बचा हुया हूँ। Software की स्थापना विधि के लिये यह pdf देखी जा सकती है।

पंकज जी भले ही किसी अदालती कार्यवाही की सोच रहे हों। लेकिन मुझ जैसा अज्ञानी तो यही सोचता है कि बचाव ही इलाज है।