यहाँ पर मैं सिलसिलेवार, पिछले कुछ दिनों में हुई घटनाओं के बारे में कुछ बताना चाहता हूँ। पूरी बात शुरू से बता रहा हूँ क्योंकि यह सार्वजनिक महत्व का विषय है। सार्वजनिक महत्व का विषय क्यों है, वह भी बताऊँगा। ...उनकी इच्छा है, मेरा चिट्ठा रखें या न रखें। मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। न रखें तो शायद उनके लिए बेहतर होगा, क्योंकि मैं अनैतिक चीज़ों का खुलासा यहाँ करता ही रहूँगा। मुझे पता है कि यदि ब्लॉगवाणी से संबंध रहे तो ऐसे प्रकरण दुबारा होंगे, क्योंकि यह दोष संचालन का है। या तो मुख्य संचालक को पता ही नहीं है कि चल क्या रहा है, या सब संचालक की जानकारी में रहते हुए हो रहा है। मुझे ऐसे स्थल पर आस्था नहीं है। मुझे नहीं लगता कि वह मेरे लिए उपयोगी होगा। इतना ही नहीं मुझे तो लगता है कि इससे हिंदी जाल जगत को बहुत बड़ा नुकसान होगा। हाँ. यदि मेरे ब्लॉगवाणी के साथ कोई आर्थिक संबंध होते या वित्तीय रूप से उनपर आश्रय होता तो यह ज़िल्लत ज़रूर झेलता। पर मुझे यह करने की कोई ज़रूरत नहीं है।
ब्लॉगवाणी द्वारा संस्थागत तरीके से फ़र्ज़ी पहचान बना के लोगों को गुमराह करना, और कई बार टिप्पणियों में गालीगलौच होने पर भी कोई आधिकारिक विरोध न होना, उसके बजाय उसको संरक्षण देने से है। यदि किसी संस्था का यही काम करने का ढंग हो, तो मैं उससे संबद्ध न रहना चाहता हूँ ... हम क्यों झेलें? क्या आप घर और काम से समय निकाल कर इसलिए अंतर्जाल पर आते हैं कि ज़लील किए जाएँ?
मैं भी पंजाब में रहता हूँ, गालियाँ तो मुझे भी आती हैं। ... सभी आक्षेप ब्लॉगवाणी के संचालन प्रणाली पर हैं, किसी व्यक्ति विशेष पर नहीं। कृपया टिप्पणी करें तो ब्लॉगवाणी की संचालन प्रणाली पर करें, व्यक्तियों पर नहीं।
मैंने कुछ मित्रों से पूछा, कि क्या हो सकता है, कि यह चिट्ठा ब्लॉगवाणी पर दिखना बंद हो गया... उनके स्थल पर डाक पता था, सो लिखा कोई जवाब नहीं आया। इस बीच कुछ लोगों ने इस बारे में प्रविष्टियाँ लिखीं। ...कुछ ने ब्लॉगवाणी से जवाबदेही की माँग की। ... पुष्टि हो गई कि यह तकनीकी खराबी की वजह से नहीं ... बल्कि जानबूझ कर ... पता चला कि {नूर मोहम्मद खान बनाम मैथिली गुप्त बनाम धुरविरोधी}, अभिनव, और सिरिल मैथिली गुप्त एक ही परिवार के सदस्य हैं और तीनो ब्लॉगवाणी से संबद्ध हैं। साथ ही अरुन अरोरा नामक एक सज्जन भी ब्लॉगवाणी से संबद्ध हैं। इनमें से कौन ब्लॉगवाणी का वास्तविक संचालक है, और किनकी क्या क्या ज़िम्मेदारियाँ हैं, यह मुझे ज्ञात नहीं।... अच्छा हुआ जो इस घटना क्रम से यह पता चल गया। यह सब तो थे तथ्य।
ब्लॉगवाणी के संचालकों को विरोध था तो ... कई छद्म नामों से क्यों ऐसा किया? यह अनैतिक है। क्या उन्हें इसके लिए क्षमा नहीं माँगनी चाहिए, क्या यह वादा नहीं करना चाहिए कि ऐसा वे पुनः नहीं करेंगे? पर अगर वादा किया भी तो क्या गारंटी है कि ऐसा फिर से नहीं होगा। क्या ब्लॉगवाणी के संचालक को मालूम था, पर उन्होंने कुछ कहना या करना ज़रूरी नहीं समझा? हिंदी जाल जगत के बाशिंदे क्या अब इस प्रकार के व्यवहार के आदी हो चुके हैं? क्या हम सबको यह सहज व स्वाभाविक लगता है? क्या ऐसे व्यक्ति का सामाजिक बहिष्कार नहीं होना चाहिए? जो संस्था ऐसे व्यक्ति को पाल रही है क्या उसका सामाजिक बहिष्कार नहीं होना चाहिए?
जिस स्थल की चिट्ठे शामिल करने और निकालने का कोई हिसाब ही न हो, और जो इस प्रकार की दूषित नीतियाँ अपनाता है, क्या उसपर भरोसा करेंगे? क्या आप उसको मान देंगे? सिर्फ़ इसलिए कि वह हिंदी में है? अब तक मैं यह मान के चल रहा था कि यदि कोई हिंदी में अंतर्जाल पर कुछ शुरू करता है तो वह सुचरित्र ही होगा। पर पता चल गया कि ऐसा नहीं है। मैं यदि किसी स्थल या परियोजना से जुड़ूँगा तो इस प्रकार की आचार संहिता के अधीन ही।
पंगेबाज तो इंटरनेट के सर्टीफाईड बंदर हैं ... ये आपको लाख गाली दें, आपका चरित्र हनन करें, फर्जी नाम यहाँ तक की खुद आपके ही नाम से टिप्पणी करें पर आप इनका कुछ उखाड़ नहीं सकते … अगर ये ही चिट्ठाजगत के भद्रपुरुष चिंतक हैं तो आप अकेले क्या कर सकेंगे। -देबाशिष
एग्रीगेटर संचालक चाहे वे कोई भी हो अपनी गरीमा बनाए रखे और इसके लिए जरूरी कदम उठाए. -संजय बेंगाणी
क्या किसी की छ्द्म पहचान को बेनक़ाब करना नैतिक है..? -अभय तिवारी
मैं छद्म नाम से ब्लॉगिगं करने में संतोष पाता हूँ। ...आप लोगों को जासूसी करने के लिए उक्साकर कोई नैतिकता का विमर्श नहीं खड़ा कर रहे हैं। हमारा यह सैद्धांतिक पक्ष रहा है कि बेनाम या छद्म नाम से ब्लॉगिंग करना ब्लॉगर का हक है। -मसिजीवी
एग्रीगेटर संबंधी विवादों के सिलसिले में मेरे पिछले अनुभव ने सिखाया कि समय और ऊर्जा को इन कामों में खपाना बेवकूफी ही है। ...हमारे कई चिट्ठाकार साथी सच्चाई और नैतिकता से अधिक अपने पक्ष या गुट के हिसाब से अपनी राय बनाते-व्यक्त करते हैं। सच्चाई और नैतिकता लोकतंत्र के बहुमत की मोहताज नहीं होती -सृजन शिल्पी
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सभी पाठक ध्यान दें --- यहां लिखा गया कोई भी शब्द मेरा नहीं है
>>>>>>> पूरा लेख टिपाणियों समेत पढ़िए यहां <<<<<<<
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हो सकता है मेरे इस ब्लॉग को ब्लॉगवाणी से हटा दिया जाये। यदि ऐसा होता है तो आप इसे चिट्ठाजगत एग्रीगेतर पर देख सकते हैं या इसे ईमेल में प्राप्त करने का लिंक आपको इसि पोस्ट पर दे दिया जायेगा
25 comments:
भाई ज्ञानजी, आपकी सब बातें सही होंगी! सबके कुछ या आंशिक जबाब ब्लागवाणी वालों के पास होंगे। और जिन लोगों के बयान आपने यहां लगाये उस सम्बन्ध में सही होंगे लेकिन हर बयान संबंध/विषय सापेक्ष होंगे।
एक घर परिवार वाले कोई एक संकलक चला रहे हैं। अपने खर्चे पर। उनसे उनके हर कदम की दरयाफ़्त करना। हर बात की सफ़ाई मांगना उनका बड़ा कठिन इम्तहान लेना है। मैथिलीजी और उनका परिवार जैसा कर रहा है गलत/सही करने दीजिये। आपकी क्षमता हो तो उससे बेहतर करके दिखाइये। सच्चाई की आपकी जिद उसी समय बनावटी लगती है जब आप अपना परिचय जाहिर किये बिना लगाये घूंघट सच का सामना किये जा रहे हैं।
आपको इतनी हिम्मत तो होनी चाहिये भैये कि अपना नाम पता जाहिर करके सच्चाई उजागर करो। आपके घूंघट के चलते कोई कोई किसी का नाम ले रहा है कोई किसी का। इत्ती बहादुरी तो दिखाओ भैये।
खुल के सामने आने की हिम्मत नहीं है तो ये सच्चाई -वच्चाई का बैंड बजाना बंद करो। शोर से बेमतलब कान फ़टता है।
जानकारी हो या न हो आपको लेकिन बता दें कि हम आदतन ब्लागवाणी से ज्यादा चिट्ठाजगत ज्यादा देखते हैं। यह भी जानते हैं कि ब्लाग और ब्लागर के लिये संकलक हैं न कि संकलक के लिये ब्लाग।
यह एकालाप किस लिए ? आप क्या कर ले रहे हैं ? एक परिवार तो दिन रात बिना किसी व्यावसायिक उद्येश्य के सामाज सेवा कर रहा है आप क्या कर रहे हैं ? आप को तो इतना भी नैतिक साहस नहीं की आप खुद के मुखौटे को अनावृत्त कर सकें ! और विष तथा वैमनस्य मत घोलिये वातावरण में ! आप हाशिये पर आ गये हैं इधर उधर मुंह गुम कर देख लीजिये !
भगवान आपका भला करें !
@ अनूप जी
मैं लिख चुका हूँ कि यहां लिखा गया कोई भी शब्द मेरा नहीं है।हिम्मत हो तो पोस्ट के अंत में दी गई लिंक पढ़ कर टिप्पणी करें।
@ अरविंद जी
मैं लिख चुका हूँ कि यहां लिखा गया कोई भी शब्द मेरा नहीं है नैतिक साहस हो तो पोस्ट के अंत में दी गई लिंक पढ़ कर टिप्पणी करें।भगवान आपका भला करे।
जान भाई वो सब हम पहले ही पढ़ चुके हैं। सबसे वाकिफ़ हैं। इस सबके बाद हुये बबाल के बाद मैंने मैथिलीजी जी से बात भी की थी और उनसे अनुरोध करके इस मसले और तकरार न करने का अनुरोध भी किया था। उस सबको दुबारा पढ़ने के लिये हिम्मत की जरूरत नहीं है जित्ता वहां लिखा हुआ है उससे ज्यादा मेरा जाना हुआ है। इसके बाद मैंने आलोक के अति उत्साह के चलती की गयी टिप्पणी की निन्दा करते हुये एक पोस्ट भी लिखी थी।
मैं जब से ब्लागिंग में आया हूं (पांच साल हुये ) मैंने देखा है यहां जो टिका है वह अपने लेखन से और कामधाम से। आप ज्ञानी ध्यानी लगते हो। अपना ज्ञान-ध्यान बड़ी लकीर खीचनें लगाइये।
किसी दूसरे को खाली छोटा साबित करके केवल अपनी निगाह में ही बड़े हो सकते हैं। दुनिया आपको बड़ा नहीं समझेगी।
ब्लागवाणी जो कर रहा है उसकी कमिया बार-बार बताकर आप उनको क्षुब्ध करके क्या पा रहे हैं? आप उनकी जो कमियां पाते हैं वो उनको बताकर दूर करने की सलाह दे सकते हों तो दे दीजिये। न दे सकते हों तो मस्त रहिये। आप इस बात को जानबुझकर अनजान से बन रहे हैं कि आपकी इस घूंघट के कारण तमाम लोग सूसरों को ज्ञानजी समझने का भ्रम पाल रहे हैं। अपनी नहीं तो दूसरों भावना का तो ख्याल करिये।
सूसरों की जगह दूसरों को बांचिये। मेरी पोस्ट खोजिये। न खोज पायें तो बताइयेगा। हम आपको बताइयेंगे।
कुछ प्रांस क्या फुसफुसा रहे हैं -
कुछ प्रांस न जाने क्या फुसफुसा रहे हैं वहां ! फूट लिए वहां से ! आप प्रांस को कैट फ़ूड मत डालिए -(डिस्ट्रिक्ट ९ देखी ? )
आईये ज्ञानी जी, 7 दिनों की छुट्टी पर गये थे आप… बढ़िया रही होंगी छुट्टियाँ, लेकिन फ़िर भी आप अभी भी वहीं टिके हैं…
खैर जाने दीजिये… पिछली पोस्ट की बहस के अन्त में आप मुझे अपनी पहचान ज़ाहिर करने वाले थे, एकाध फ़ोटो भेजने वाले थे, उसका क्या हुआ? मैं इन्तज़ार कर रहा हूं भाई। अब तो अनूप जी भी आपके घूंघट उठने का इन्तज़ार कर रहे हैं…
उसी पोस्ट में मैंने एक टिप्पणी में वही कहा था जो अनूप जी ने अभी कहा है कि "दूसरों की लाइन छोटी करने की बजाय अपनी एक नई बड़ी लाइन खींचकर दिखाओ…", जबकि आप तो गड़े मुर्दे उखाड़ने पर तुल गये… लगता है फ़िर से 70-80 टिप्पणियाँ लेने का इरादा है आपका…
अरे Mr ज्ञान, ये सब क्या झांय झांय लगा रखे हो....बेमतलब का ।
बहुत कोफ्त होती है इस तरह की पोस्टों को देखकर।
एक बार खुद भी कुछ इस तरह का संचालन करके देखिये....हो सकता है आपको आटे दाल का भाव मालूम पड जायगा ।
एक बार बिजली का बिल जरा सा ज्यादा क्या आ जाएगा, शुरू हो जाओगे... अरे जरा पंखा कम इस्तेमाल करो, अरे जरा लाईट बंद करो दिख तो रहा है... प्रेस कम इस्तेंमाल करो...ये करो...वो करो...
जहां तक मैं समझता हूँ ब्लॉगवाणी का सर्वर ब्लॉगरों के लिये एक तरह से दान ही दिया जा चुका है जो चौबीसों घंटे दनदनाता हुआ चलता रहता है....बिजली का बिल संचालक भरें, उसमें लगी टीम के लोग अपना समय खर्च कर ब्लॉगवाणी को अपडेट करते रहें और आप जैसे लोग कोसते रहें तो किसका दिल नहीं जलेगा।
अच्छा है कि ब्लॉगवाणी आप जैसे लोगों को मुंह नहीं लगाती और स्पष्टीकरण नहीं देती।
और हां मैं कभी भी कडी टिप्पणी नहीं करता, लेकिन आप की हरकतें ऐसी हैं कि कहे बिना नहीं रह सका।
अपना नाम या पहचान रख लो अज्ञान तभी तो नहीं बनोगे तुम मंजान। ज्ञान ही रहो ज्ञान ही कहो अच्छा लगता है।
@अनूप शुक्ल जी
मैं यहां किसी के आने जाने पड़ने लिखने का हिसाब रखने के लिये नहीं आया। यह पोस्ट और आने वाली पोस्टे उनके लिये है जो ब्लोगवाणी के झूटमूठ क बंद होने पर हाहाकार मचा कर उसका जिम्मेदार मुझे ठहरा रहे हैं पोस्ट लिखलिख्कर,कमेंट कर कर।मुझे खुसी होगी अगर उस पोस्ट पर आये लोग यहां और आने वाली पोस्टो पर भी कुछ लिखें।
उन सभी को मालूम होना चाहिये कि ब्लोगवनी के बन्द होने के बैकग्राउन्ड में बहुत कुछ है।मुझे तो बलि का बकरा बना दिया गया।
@ सुरेश जी
अगर कुछ बनाना हो तो बुनियाद रखने के लिये खुदाई तो करनी पडती है।अब उस खुदाई मे गडे मुर्दे निकलें तो जिम्मेदार कौन।खुदाई करने वाला या कत्ल करने वाला?
मैं छुटी पर नहीं था।अपने व्यव्साय के कारण देश के बाहर था।
टिप्पणिया किसी के गले मे हाथ डाल कर मैं नही निकालता।आप जैसे दे जाते हैं।
@ सतीश जी
बजाय मुझे कोसने के पोस्ट के मुदों पर कुछ लिखते तो कुछ बात बनती
हे भगवान्! अब क्या बंद होनेवाला है!?
्बचपन में सुना -पढा था कि....नाम कमाने के दो तरीके होते है...सकारात्मक और नकारात्मक..और मेरा यकीन मानिये..अभी तक अपने जीवन के अनुभवों से ये बात सौ प्रतिशत ठीक भी लगी मुझे...आप काबिल हैं..और ज्ञानी भी जैसा कि आप खुद ही कहते हैं...हां काबिल इसलिये कहा कि ....आपने अपनी बात रखने और साबित करने के लिये ..सिर्फ़ धमाचौकडी नहीं मचाई.......
मगर मुझे ये बताईये कि आखिर साबित क्या और क्यों करना चाहते हैं आप...मैंने गौर से देखा पढा आपको तो पाया कि ...पिछले लगभग एक साल में कुल तैंतीस पोस्ट...और ये नतीजे...ऐसे परिणाम.....मुझे नहीं पता कि आपका उद्देश्य क्या था ..या अभी भी है...मगर तरीका यकीनन गलत था ..आपकी उस पोस्ट पर मैंने भी प्रतिक्रिया दी थी क्योंकि ये उस मुद्दे पर सामने आई पहली पोस्ट थी...मगर अब जबकि सब कुछ...या कहूं कि बहुत कुछ सामने आ गया है ..तो एक बार फ़िर आपने आलोक कुमार जी के पिछले पोस्ट का लिंक सबके सामने रख दिया ..शायद ये बताने के लिये ..कि आप अकेले नहीं हैं..या फ़िर ये कि ...उस आलेख के कारण आपने ऐसा लिखा.....
आलोचना के विषय में मेरा सिर्फ़ एक सिद्धांत है ..उसके लिये आपकी हैसियत होनी चाहिये ..जो कि आपके योगदान से ही बनती है ...सिर्फ़ उंग्लियां उठा भर देने से बात नहीं बनती.....बहरहाल जो भी हो ..यदि आप अपनी इस योग्यता को ...मूरख के ज्ञान की तरह न बांट कर कुछ सकारात्मक करेंगे तो सबका ज्यादा भला होगा..ऐसा मुझे लगता है...
कुछ कहने लायक छोड़ा ही नहीं. दसबिदानिया आपके लिए.
@ अजय कुमार झा
अगर कोई राह से गुजर रहा हों और उसकी कमीज पर मानव मल या पशु मल बेख्याली में लगा हो या खुद ही लगा कर चल रहा हों।मेरे जैसा मूरख उसे बता दे दो चार लोग भी इक्कठा हो जाये तो क्या होगा
लोग मुझे पीटेंगे
लोग मेरी बात का समर्थन करेंगे
लोग उस आदमी कमीज बदल्ने को कहेंगे
लोग पूछेंगे कि इससे पहले किसी ने टोका नहीं क्या
लोग पूछेगे इससे पहले वो आदमी कहां कहां गया थ
लोग मुझे कहेंगे कि दूसरो की कमीज से अच्छी कमीज पहन लूं
लोग कहेंगे कि ये आदमी मुझे रोज कुछ देता है तुम कौन होते हो इसकी गंदगी बताने वाले
लोग मेरा इंटरव्यू लेंगे कि आखिर आप साबित क्या करना चाह्ते हो
लोग कहेंगे कि जायो पहले उस आदमी जैसी कमीज पहनने की हैसियत रखो फिर बताना गंदगी लगी है
फिर?
थोडी देर बाद वह आदमी कमीज उतार कर फेक देगा लोग कहेंगे पहनो पहनो वरना कल हमे कुछ दे नही पायोगे वह आदमी कमीज दुबारा पहन लेगा कहेगा घर जा कर साफ कर लूगा
जब घर जा कर साफ करना ही है तो उस मूरख का क्या दोष
अपने दिल से पूछिये,
उस पर भरोसा कीजिये !
"जो भी जायज़ लगे" लिखते रहिये !
रिएक्शन की चिंता मत करिये !
गांधी जयंती पर ब्लागर को नया तोहफ़ा: " ब्लागप्रहरी" : एक विशेष ब्लाग एग्रीगेटर
ब्लाग जगत मे जब प्रहार ज्यादा होने लगे और सृजन की प्रक्रिया धीमी हो जाने लगे, तब यह भान हो जाना चाहीये कि वक्त एक बड़े बदलाव का है। वर्तमान समय में ब्लागींग का गीरता स्तर, इसके शुभागमन के समय अनुमानित लक्ष्यों से बहुत दूर धकेलने वाला है। इस दिशा में एक सार्थक पहल हुई है, और उस प्रयास को संज्ञा " ब्लागप्रहरी" देना सर्वथा प्रेरणात्मक है।
ब्लागप्रहरी का उद्देश्य ब्लाग जगत के दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे विसंगतियों से अलग एक आदर्शस्वरूप ब्लाग मंच मुहैया कराना है।स्वरूप से एक एग्रीगेटर होने के बावज़ूद इसकी कार्य-प्रणाली विस्तृत और नियंत्रित होगी।
(हमे ब्लागप्रहरी को एक एग्रीगेटर के रूप में नहीं बल्की विचार-विमर्श और ब्लागींग के एक सार्थक प्लेटफार्म के रूप में स्थापित करना चाहते हैं।आपसे निवेदन है कि आप इसका मुल्यांकन किसी एग्रिगेटर से तुलना कर के न करें!)
जैसा कि नाम मात्र से स्पष्ट है, इसका एकमात्र लक्ष्य ब्लाग जगत में एक आदर्श ब्लागींग के मापदंड की स्थापना करना और ब्लागींग जैसे सशक्त, अभिव्यक्ति के हथियार को धारदार बनाये रखना है।
क्या है योजना!
(1) ब्लागप्रहरी एक अत्यन्त आधुनिक और और नियंत्रित ब्लाग एग्रीगेटर होगा। याहां पर चुनिन्दा ब्लाग और लेखकों के लेख हीं प्रकाशित होंगे, जिसका निर्धारण 15 सदस्यीय ब्लागप्रहरी की टीम करेगी। वह टीम आप ब्लागर्स के सुझाव पर आधारित एक परिभाषित व्यवस्था होगी। सर्व-सामान्य के लिये यक केवल पठन और प्रतिक्रिया देने तक सीमित रहेगा। हां, हम लगातार नये ब्लाग शामिल करते रहेंगे और अनुचित सामग्री के प्रकाशन और अमर्यादित भाषा प्रयोग जैसे अन्य निर्धारकों के आधार पर सदस्यता समाप्त करना, अस्थायी प्रतिबंध जैसी तमाम हथियार मौजूद होंगें। यह एक नि:शुल्क जनहित योजना है, और इसका एकमात्र ध्येय
ब्लाग को वैकल्पिक मीडिया के स्वरूप में स्थापित करना है।
ऐसे मापदंड रखने के कारण क्या थे।?
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बन्द करो ये सब बकवास समझे भाई की नहीं। अरे कुछ कर के भी दिखाओ तो पता चले ना कितने पानी मे हो। दुसरो की गलतियाँ ढ़ुढने में बड़ा मजा आता है। कभी किसी सामूहिक ब्लोग का संचालन कर के देखो तो कितना दम है सब हाथ मे आ जायेगी। अरे इतनी ही दिक्कत है ब्लोगवाणी से तो कोई नया एग्रीगेटर क्यो नहीं बना लेते है ईसी बहाने तुम्हारी कितनी माद्दा है ये भी सामने आ जायेगी। कभी किसी की खुबीयाँ भी देख लिया करो।
"अब तक मैं यह मान के चल रहा था कि यदि कोई हिंदी में अंतर्जाल पर कुछ शुरू करता है तो वह सुचरित्र ही होगा। पर पता चल गया कि ऐसा नहीं है। "
"अब तक" से आपका मतलब इस पोस्ट की तारीख तक? आपके यह विचार आपके इस ब्लॉग को शुरू करने के बाद ही ख़त्म हो जाने चाहिए थे....:-)
ज्ञान जी, किसी के बारे में चार लाइन लिख कर, उसकी खिंचाई करके, उसे नीचा दिखा कर आपने भी तो न जाने कितनी बार पंद्रह से ज्यादा पसंद पाई है. ज्ञान जी, पांच लाइन की पोस्ट लिखकर आपने कौन सा कलम तोड़ लेखन कर दिया था जो आपकी पोस्ट को इतनी पसंद मिली?
ऐसे मामलों को फालतू का तूल देकर क्या मिलेगा? आप को तकनीकि की इतनी बढ़िया जानकारी है. आप उसका इस्तेमाल कर तमाम ब्लॉगर जिन्हें तकनीकी जानकारी नहीं है, उन्हें मार्ग दिखायें. उनकी समस्याओं को सुलझाने का एक मंच तैयार करें. कुछ नहीं मिलेगा जी ऐसी पोस्ट लिखकर. समय के साथ-साथ सब यह विवाद भूलकर आगे चले जायेंगे. ऐसे में जितना जल्द हो सके, विवाद ख़त्म कर देना चाहिए.
(और ये आपने टिप्पणी वाले बॉक्स के ऊपर क्या लिख दिया है, सर? ज्ञान आप खुद हैं और ज्ञान भरी टिप्पणियां दूसरों से चाहते हैं? ना-इंसाफी नहीं है यह?)
्देख लिजीये ज्ञान जी...आज भी टीप बढती जा रही है....टिप्पणी प्रतिटिप्पणी....बताईये और क्या चाहिये भला .....?एक आप हैं जो मूरख हो कर भी इतना ज्ञान बांट रहे हैं और एक ठहरे हम जो इतना ज्ञान पाकर भी महामूरख ही बने हुए हैं..... और हां ये क्या लिखा आपने
हो सकता है मेरे इस ब्लॉग को ब्लॉगवाणी से हटा दिया जाये। यदि ऐसा होता है तो आप इसे चिट्ठाजगत एग्रीगेतर पर देख सकते हैं या इसे ईमेल में प्राप्त करने का लिंक आपको इसि पोस्ट पर दे दिया जायेगा
अरे आपका ब्लोग तो ब्लोगवाणी ने नहीं हटाया ...अब क्या किया जाये...ये तो अन्याय है ..कुछ इसके खिलाफ़ भी हो जाये...
@ शिव कुमार मिश्रा
जब पोस्ट में लिखा जा चुका है कमेंट में बताया जा चुका है कि यहां लिखा गया कोई भी शब्द मेरा नहीं है
सिर्फ कापी पेस्ट किया हुया है।जहां से कापी किया गया है वह पूरा लेख टिपाणियों समेत पडअने की लिंक भी दी गयी है।फिर भी आप इस पोस्ट को मेरा लिखा बताते है मतलबा आपने पोस्ट और कमेट पडे ही नहीं।फिर से पढिये या यह लिंक देखिये http://devanaagarii.net/hi/alok/blog/2007/10/blog-post_30.html
ऊपर से पढ़ना शुरू करें, कहीं पर भी लिखा हुआ नहीं है कि यह आपका लिखा लेख नहीं है? न तो आपने कोई भूमिका लिखी और न ही कोई प्रस्तावना. लेखन कर रहे हैं तो कम से कम ऐसी जानकारी वहां लिखिए जहाँ लिखनी चाहिए. सबकुछ लिखने के बाद आपने छोटे अक्षरों में नीचे लिख दिया कि;
"सभी पाठक ध्यान दें --- यहां लिखा गया कोई भी शब्द मेरा नहीं है"
यही बात तो लेख के शुरू में भी लिख सकते थे. न तो आपने कहीं भी लिखा कि यह आलोक कुमार जी का लिखा हुआ लेख है. बस एक जगह डिस्क्लेमर चेंप दिया आपने. कुछ-कुछ सिगरेट बनानेवाली कंपनियों की तरह. सबकुछ लिखने के बाद छोटे-छोटे अक्षरों में लिख देते हैं कि; "सिगरेट स्मोकिंग इज इन्जुरियस टू हैल्थ." और उसके बाद कहते फिरते हैं कि साहब हमने तो डिस्क्लेमर लिख दिया है.
खैर, मेरी पहली टिप्पणी में मसले को बंद करने के बारे में जो कुछ लिखा गया है, उसे मैं वापस लेता हूँ. आप चालू रहें. और पोस्ट लिखें. और पोस्ट कॉपी पेस्ट करें. लगे रहें. मसला बंद नहीं होना चाहिए.
मैं तो कामना करता हूँ, आपका ज्ञान हिन्दी नेट जगत को रोशन करने के काम आए.
मित्र बहुत विषय है इस जगत में लिखने के लिये, सिर्फ ब्लागवाणी ही नही। कीचड़ में पत्थर मारोगे तो छीटें खुद पर भी आयेगे।
ब्लागवाणी को काम करने दीजिए, आप भी कीजिए हम तो कर ही रहे है।
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