वो तो बस इतना ही लिख पाये कि कई शख्सियतों से रूबरू होने का मौका मिला। कई लोग याद किए गए। आलोक धनवा जी की कवितायें और विचार सुनने मिले।
जिस अन्दाज में संजीत त्रिपाठी लिख चुके हैं उसके अनुसार तो महेश सिन्हा को ले जाया गया था और इस काम को खेला बता दिया मतलब कि 'गेम'
यह बात लिखी ग्यी कि सिद्धार्थ ने सौम्यता पूर्ण कहा कि सबको खुला निमंत्रण था। लेकिन यह नहीं बता पाये महेश सिन्हा कि ई-मेल फिर क्यों भेजी गई कुछ ब्लागरों को। मूल सूचना पत्र में भी लिखा गया था

महेश सिन्हा को सरकारी पैसों का भुगतान किया गया तो उसके बदले में वहाँ उनका क्या योगदान था यह ना तो महेश सिन्हा लिख सके ना ही वर्धा विश्विद्यालय बता रहा।
सभी ब्लॉगरों के नाम के आगे पीछे श्री/ सुश्री व जी लगा हुआ समझा जाये।
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