11 July, 2009

संजय बेंगानी जी! गर्व से कहना और नाज़ करना अलग अलग चीजें हैं

छत्तीसगढ़ वासी हूँ इसलिए बात जरा लग गई है। संजय बेंगानी जी ने पता नहीं किस मूड में रवि रतलामी जी के रायपुर प्रवास पर लिखी गई एक पोस्ट पर लिख मारा है कि 'आप कहते हो नाज है तो होगा, वैसे जब अखबारों में महान चिट्ठों के बारे में लिखते हैं हमें रवि रतलामी का चिट्ठा कहीं नहीं दिखता. आप समझ रहें हैं मेरी बात?'

अब हम ठहरे मूरख। हमने भागदौड़ करने की बजाय गूगल पर ही सर्च मारा। नतीजा क्या आया देखिए:

raviratlami के लिए लगभग 359,000
sanjay bengani के लिए लगभग 70,400

रवि रतलामी के लिए लगभग 80,200
संजय बेंगानी के लिए लगभग 1,700

रवि रतलामी के ब्लॉग छींटें और बौछारें के लिए लगभग 176,000
संजय बेंगानी के ब्लॉग जोगलिखी के लिए लगभग 126,000

और
रवि के लिए लगभग 10,700,000
संजय के लिए लगभग 737,000

वैसे भी R, S के पहले आता है। समझ गये ना बात को?

अब भी कोई कसर बाकी है तो अपने प्रदेश के बाहर के समाचार पत्रों में अपने ब्लॉग का उल्लेख करने वाली कतरनें सामने लाईये। छत्तीसगढ़ से बाहर के समाचार पत्रों में रवि जी के ब्लॉग का उल्लेख करने वाली कतरनें हम ला देंगें।

गर्व से कहना और नाज़ करना अलग अलग है श्रीमान

8 comments:

राजकुमार ग्वालानी said...

ज्ञान जी,
आपने संजय बेंगाणी की टिप्पणी का काफी अच्छा जवाब दिया है। हम आपके आभारी हैं। रवि रतलामी जी के व्यक्तित्व के साथ काम ने हमें इतना ज्यादा प्रभावित किया कि हम छत्तीसगढ़ के वासी होने के नाते उनकी तारीफ किए बिना रह ही नहीं सकते थे। अगर कोई इंसान नि:स्वार्थ किसी की मदद कर रहा है तो उनकी मदद की तरीफ करने की बजाए उस पर कटाक्ष करना गलत बात है। इससे पहले की हमें संजय जी की बातों पर कोई जवाब देने का मौका मिलता, आप जैसे जानकार ने एक काफी अच्छे विशलेषण के साथ ऐेसा करारा जवाब दिया है जो सबको लाजवाब करने के लिए काफी है। न जाने क्यों ब्लाग बिरादरी में लोग एक-दूसरे की टांग खींचने का काम कर रहे हैं। हमारा तो ऐसा मानना है कि अगर कोई दुश्मन भी अच्छा काम करता है तो उस काम की तारीफ होनी चाहिए। किसी की आलोचना करने से आपको हासिल कुछ नहीं होने वाला है। आपकी पोस्ट के साथ रवि जी के चाहने वालों ने बता दिया है कि वास्तव में रवि जी क्या है। अब कोई उनके बारे में क्या सोचता है इससे क्या फर्क पड़ता है। सोच अपनी-अपनी और समझ अपनी-अपनी।

Udan Tashtari said...

मुझे लगता है कि आप संजय बैंगाणी की टिप्पणी का मन्तव्य समझ ही नहीं पाये और बात का बतंगड़ बना रहे हैं....एक बार फिर ओपन दिमाग से उनकी टिप्पणी पढ़े. जल्दबाजी में मित्रों को दुश्मन समझें.

eSwami said...

आपने अपने ब्लॉग का शीर्षक एकदम सही चुना है! मूरखों वाली बात ही की है आपने.

मैं संजय और रवि दोनो को करीब से जानता हूं. क्या आपको इसका भान है कि उन दोनो के संबंध भी आपस में कैसे हैं और कितने समय से हैं?

संजय के कहने का मतलब है कि कई बार जब अखबारों में हिंदी ब्लाग मंडल के धुरंधरों का जिक्र आता है तब रवि जैसे कर्णधारों को नज़रअंदाज कर ऐरे-गैरों का नाम आगे हो जाता है - वे भारतीय ‘सैटिंग-तंत्र’ पर कटाक्ष कर रहे हैं.

आप उनकी बात बिल्कुल उल्टी समझे हैं. अगली बार जब उपर वाला अक्ल बांटे तो लाईन में थोडा आगे खडे होना - खुरचन से कुछ अधिक मिल जाएगा! (अगर आपको मिर्ची लगी पढ कर तो मैं अपने ध्येय में सफ़ल हुआ हूं!)

संजय बेंगाणी said...

प्रिय मित्र आप मेरे व्यंग्य को नहीं समझे आशा है, रविजी जरूर समझेंगे, उन्हे फोन मारता हूँ. टिप्पणी कम शब्दों में हो यही अच्छा है. अतः हो सकता है बात स्पष्ट न हुई हो.

मामला यह है कि आज कल हर कोई ज्ञानी बन कर चिट्ठों का इतिहास लिखता है और उनमें विवादास्पत बेकार चिट्ठों का ही उल्लेख होता है, जबकी उन लोगो का नाम व चिट्ठा सर्वथा गायब रहता है, जो वास्तव में मील के पत्थर है. रवि रतलामीजी खूद व उनका चिट्ठा ऐसे ही मील के पत्थर है. रविजी आपके ही नहीं मेरे भी आदर्श है, अतः फिर से टिप्पणी में व्यक्त व्यंग्य को देखें.

आप मुझे मेल करके भी स्पष्टीकरण ले सकते थे, मैं सदा उपलब्ध रहता हूँ.

शुभकामनाएं.

ज्ञान said...

@ Udan Tashtari said...मित्रों को दुश्मन समझें
--वही तो किया :-)

@ eSwami said... अगली बार जब उपर वाला अक्ल बांटे तो लाईन में थोडा आगे खडे होना
--हम जहां खड़े होते हैं लाइन वहीं से शुरू होती है (अमिताभिया डायलाग-अभी अभी किसी टिप्पणी में पडा) :-)
अगर आपको मिर्ची लगी पढ कर तो मैं अपने ध्येय में सफ़ल हुआ हूं!
--सुबह देखेंगे :-)

@ संजय बेंगाणी said... आज कल हर कोई ज्ञानी बन कर चिट्ठों का इतिहास लिखता है और उनमें विवादास्पत बेकार चिट्ठों का ही उल्लेख होता है
--जिस पोस्ट पर आपकी टिप्पणी दिखी वहां रवि जी के चिट्ठे की कोई बात नहीं हुई थी। बात हुई थी उनके सॉफ्टवेर की और उनसे हुई मुलाकात का। अफसोस उस बारे में एक शब्द नहीं लिखा गया। उल्टा कंधे उचकाने के अंदाज में लिख दिया कि आप कहते हो नाज है तो होगा! अब हम जैसे मूरख क्या समझेंगे?
अब जब बात स्प्ष्ट हो गी है तो आपकी शुभकामनायों हेतु धन्यवाद

अनूप शुक्ल said...

धन्य हैं आप! स्वामीजी की बात अब क्या दोहरायें? :)

संजय बेंगाणी said...

मैं मित्रों से कोई गिला शिकवा नहीं रखता, आपके मन में रविजी के प्रति जो आदर है, वह देख कर अच्छा लगा, खूशी हुई.

और गूगल सर्च आपने गलत नाम से किया है, अगर संजय बेंगाणी के नाम से करें तो 78,700 परिणाम मिलेंगे, इसे ठीक कर लें...क्या है इज्जत खराब होती है ना :) :) :)

पंकज बेंगाणी said...

श्री रवि रतलामी की प्रशंसा में कुछ भी लिखना सूरज को दिए दिखाने जैसा है.

:)

[ब्लॉगजगत से आजकल दूर हो गया हूँ तो कई मजेदार किस्से छूटे चले जाते हैं]