08 August, 2009

संजय बेंगाणी किसको भड़का रहे हैं?

संजय बेंगाणी जी की भावनायों को सलाम। एक भारतीय के रूप में गूगल के इस कथित कदम का विरोध उसकी समस्त सेवाओं को त्याग कर जताना चाह रहे हैं तो उनका स्वागत किया जाना चाहिये

लेकिन जिस गूगल के दम पर फले फूले, उसे लांछित क्यों कर रहे?

आप स्वयम देखिए वे कितने सच का सामना कर रहे।

यह तस्वीर सेटेलाईट से ली गई है, जिसका URL http://wikimapia.org/#lat=26.7456104&lon=94.0869141&z=7&l=19&m=b&v=8&search=itanagar
है। इसमें पीली सीमा रेखा देखिये, Arunachal Pradesh, India लिखा हुआ देखिये और इटानगर का गवर्नमेंट हायर सेकेंडरी स्कूल का स्थान भी देखिए

------------------------------------------------------

यह तस्वीर विकिमैपिया की है। URL है http://wikimapia.org/#lat=26.7456104&lon=94.0869141&z=7&l=19&m=s&v=9&search=itanagar
इसमें बनी प्रादेशिक सीमा देखिये, Arunachal Pradesh, India लिखा हुआ देखिये और इटानगर का गवर्नमेंट हायर सेकेंडरी स्कूल का स्थान भी देखिये। रूसी भाषा लिखी भी देखिये

----------------------------------------

यह तस्वीर सामान्य मानचित्र की है। URL है
http://wikimapia.org/#lat=26.7456104&lon=94.0869141&z=7&l=19&m=w&search=itanagar
इसमें बनी प्रादेशिक सीमा देखिये, Arunachal Pradesh, India लिखा हुआ देखिये और इटानगर का गवर्नमेंट हायर सेकेंडरी स्कूल का स्थान भी देखिए। रूसी भाषा लिखी भी देखिये

कुछ समझ में नहीं आया ना?

संजय जी जिस गूगल मैप्स की बात कर रहे वह बनाया ही इसीलिये गया है कि हम आप उसे तोड़ मरोड़ कर पने उपयोग के लायक बना सकें। आप भी देखिये इस जगह http://maps.google.co.in/support/bin/answer.py?hl=hi&answer=68259 जहाँ गूगल खुद कहता है कि
'आप Google Maps में ऐसे और अधिक कस्टम मार्कर देख सकते हैं जिन्हें दूसरों ने बनाया हो या यहां तक कि आप अपने स्वयं के बना सकते हैं'

यहीं गूगल यह भी कहता है कि Google Earth Enterprise उत्पादों द्वारा निजी मानचित्र बनाये जा सकते हैं

संजय जी जिस राष्ट्रवादी विचारधारा की छाया में पनपे हैं यदि उसे कायम रखते तो अपने संस्थान की वेबसाईट chhavi.in को एक विदेशी सर्वर 72.232.161.10 पर होस्ट न करवाते जो कि Texas के Layered Technologies Inc में है।

सेवायें मत लीजिये गूगल की लेकिन इस तरह लोगों की भावनायों को भड़काने का काम कर वे क्या बताना चाह रहे हैं? भारत के हिस्से को पड़ोसी देश में अर्से से दिखाया जा रहा तब कहाँ था यह विरोध?

क्या वे इतनी सी बात नहीं जानते कि गूगल मैप्स क्या चीज है?

19 comments:

विवेक रस्तोगी said...

ओहो अब ये तो खुद जाकर ही देखना पड़ेगा, कि ये सब क्या है। हम तो इसलिये भावनाओं में बह गये थे कि संजय जी बिना किसी सबूत के तो नहीं लिखेंगे। अब खुद ही निष्कर्ष निकालना पड़ेगा।

Udan Tashtari said...

भड़काने और जायज बात पर विरोध जताने में कुछ तो फर्क करो मित्र!!

दिनेशराय द्विवेदी said...

गूगल स्वीकार कर चुका है कि उस से नए डा़टा चढ़ाते समय यह त्रुटि हुई है जिसे जल्दी ठीक कर दिया जाएगा।

Anonymous said...

कल के हादसे के बाद अब कहा जा रहा है कि गूगल की जिस साइट पर यह नक्शा दिखाया गया है उसको चीनी हैकर्स ने हैक कर लिया है और नक्शे के साथ छेड़छाड़ की है।

गूगल यह बात मानेगा नहीं और पूरी गलती खुद स्वीकारेगा वरना लोग क्या कहेंगे गूगल के पास डाटा सुरक्षित नहीं :-)

Unknown said...

आपने यह जरूरी कार्य करके कई भड़क चुके लोगों को मुंहदिखाई का रास्ता सुझा दिया।

वरना आने वाले दिनों में बहुत से लोगों को बडी़ तकलीफ़ होती।

वैसे भडके हुए लोगों की वाक् पटुता बेंगाणी जी के ब्लॉग पर भी नज़र आ रही थी।

काश यह आपने दो-तीन दिन बाद किया होता, फिर यह देखने में काफ़ी मज़ा आता कि कितने लोगों ने बोरिया-बिस्तर समेटे हैं।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

हा भाई, हम तो आग में हाथ ताप कर मज़ा लूटने वाले लोग हैं!!! पर यह क्या कि गूगल ने गलती स्वीकार कर ली........या वो भी झूठ ही है:(

L.Goswami said...

समीर जी से सहमत ....भड़काने और जायज बात पर विरोध जताने में कुछ तो फर्क किया जाय ..बाकि हर इन्सान फैसला दोनों पक्ष देख कर ही लेता है.

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

समीर जी से सहमत .

Anonymous said...

एक सवाल: राज ठाकरे, बाल ठाकरे, करूणानिधि, वरूण गांधी जैसे लोग विरोध करते हैं या जनभावनायें भड़काते हैं?

अनुनाद सिंह said...

।जब आप यह कह रहे हैं कि "जिस गूगल की सेवाओं को ... " तब आप गलत हैं। गूगल कोई धर्मार्थ काम नहीं कर रहा, शुद्ध व्यापार कर रहा है।

दूसरी बात - मुर्गा नहीं होगा तो सवेरा नहीं होगा, ऐसा चिन्तन मत करिये। गूगल नहीं होता तो हो सकता है कि कोई दूसरा होता और इससे अच्छी सेवायें देता। बड़े-ब।दे खोज तक के बारे में विचारकों का कहना है कि वे किसी व्यक्ति के मुहताज नहीं हैं ; यदि किसी 'क' ने उस काम को नहीं किया होता तो कोई 'ख' उसे अवश्य करता। अर्थात आईन्स्टीन नही होते तब भी 'सापेक्षिकता का सिद्धान्त' किसी दूसरे ने खोज लिया होता; परमाणु बम 'अमेरिका' ने नहीं बनाया होता तो जर्मनी बना लेता;

यानि आविष्कार परिस्थितियों की उपज हैं, न कि किसी व्यक्ति की।

Unknown said...

गूगल का जो स्पष्टीकरण और माफ़ी आई है, वह किस सिलसिले में है ज्ञान जी?

ज्ञान said...

सुरेश जी, जब घर का कोई शरारती बच्चा (हैकर) आदतन कहीं कुछ गल्त कर आता है तो उसकी पहचान घर के पते (गूगल) से होती है। लोग (हम-आप) उस घर के बाहर अपन विरोध प्रदर्शन करते हैं, गालियां देते हैं। बच्चा कहीं किनारे आईसक्रीम खाता रहता है और अपनी साख को बचाये रखने के लिये घरवाला मुखिया बाहर आकर लोगों के सामने विनीत हो कर, हाथ जोड़े माफी मांगता रहता है, कहता है कि सब ठीक हो जायेगा, आगे से ऐसा नहीं होगा, मैंने ही कहा था जायो बाहर खेल आयो।

और फिर वापस घर के अंदर आकर उस बच्चे को डांट-मार पड़ती है कुछ और बंधन-प्रतिबंध लगा दिये जाते हैं।

यह वैसा ही मामला है कि किसी असामाजिक तत्व के रेल पटरी उखाड़ देने से रेल पलट जाये फिर इस्तीफा रेल मंत्री से मांगा जाये वह माफी मांग कर रेल्वे के अदना से कर्मचारी को निलंबित कर दे

वैसे इसे भी देख-पड़-समझ लें http://rajlekh-hindi.blogspot.com/2009/08/internet-hecker-hindi-lekh.html

अगर मैं आपकी बात का सही जवाब न दे सका पाया होऊं तो क्या करूं आखिर मैं मूरख, तुम ज्ञानी

Unknown said...

अरे-अरे-अरे ज्ञान जी क्या बात कर दी आपने आप तो नाम से भी ज्ञानी हैं, मेरी इतनी हैसियत कहाँ… मैं तो सिर्फ़ यह समझने की कोशिश कर रहा हूँ कि क्या बेंगाणी जी को परिवार के मुखिया से शिकायत करने की बजाय सीधे उस शैतान बच्चे के कान मरोड़ने चाहिये थे? या उस मुखिया से ही सवाल-जवाब करना चाहिये कि जब वह इतने प्रतिष्ठित और सुरक्षित खानदान से है तो यह बच्चा शरारत कैसे कर गया? जिसके कारण गफ़लत फ़ैली…

aarya said...

भाई जी !
आप की गूगल से प्रेम इस देश से भी बढ़कर है, आप पता नहीं क्या साबित करना चाहते है लेकिन आपको जानकारी होनी चाहिए की गूगल ने इस कृत्य के लिए माफ़ी मांगी है. अगर उसने गलती नहीं की होती तो माफ़ी क्यों मागते. आप क्यों नहीं मान रहे हैं येसमझ में नहीं आता, सब संजय बेंगाणी नहीं हो सकते क्योंकि उन्होंने जो पहल की वो किसी ने नहीं की उनके इस मात्रभूमि के प्रति प्यार का मजाक न उडाएं, अगर सहयोग नहीं कर सकते तो आग्रह है इस तरह के वेसिरपैर के जबाब न दें,
गलती के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ !
रत्नेश त्रिपाठी

ज्ञान said...

आर्य जी, जिसने प्रश्न किया था जवाब उसि को दिया गया है आप क्यों तिलमिला रहे हैं मेरे कथित गूगल प्रेम से इतना ही एतराज है तो खुद क्यों जिमेल और ब्लोग्स्पोट पर सवार हो कर दहाड़ रहे हैं सम्जय जी जितनी हिम्मत है तो सब त्याग दिजिये

मुझे मालूम है आप नहीं कर पायोगे। त्याग वही कर पाता है जो सम्तुष्ट हो चुका रहता है हमारे जैसे नग्न क्या नहाये क्या निचोड़े। वैसे मेरा जवाब समझ जाते तो पता चलता कि गलती न करने के बाद भी गूगल माफी क्यों मांग रहा? कुछ शोध इस पर भी कर लेना भाई जी!

वैसे आपकी बातों से वो कहावत याद आ गयी क्या तो है वो शायद कुछ थाली.. खाते हैं.. छेद.. जैसा कुछ

कुश said...

संजय जी के ब्लॉग पर मेरी भी टिपण्णी थी.. और उन से मैंने भी सहमति जताई थी.. ये सब कुछ भावनाओ में बहकर नहीं किया.. संजय जी का ब्लॉग पढने के तुंरत बाद मैंने देखा क्या ये वाकई ऐसा है.. ? जब मैंने पाया कि गूगल के अलावा विकीमैपिया,मप्स माय इंडिया और याहू मैप्स में ऐसी कोई त्रुटी नहीं है.. तब मैंने गूगल पर भी इस बाबत शिकायत दर्ज करा दी थी..

मुझे लगता है आपसे कुछ गलती हुई है.. आप जो मार्क देख रहे है.. वो लोगो ने लगाये है.. उनमे गलतिया हो सकती है.. संजय जी ने उसकी बात नहीं की है.. उन्होंने गूगल द्वारा इटानगर को भारत की सीमा से बाहर होने पर आपत्ति दर्ज करायी थी.. जो ठीक बात है.. आप दोबारा देखिये.. विकी मैपिया में ये ठीक है.. और गूगल ने दुसरे दिन ही इस बात की माफ़ी भी मांग ली है..

ये मामला रेल की पटरी उखाड़ने का नहीं.. ये मामला गलत रूट पर रेल की पटरी लगाने का है.. इसके लिए तो रेल विभाग के कर्मचारी ही जिम्मेदार है.. मैं फिर कह रहा हूँ इटानगर को किसी और ने मार्क नहीं किया था.. ये गूगल के मैप पर भारतीय सीमा रेखा से बाहर था..

रही बात उनकी अपनी साईट की तो इंडिया के सर्वर्स की हालत हमें भी पता है कैसी है.. विदेशी वस्तु का उपयोग देशद्रोह नहीं कहलाता.. यदि इंडिया में द प्लानेट जैसी सेवाए देने वाले सर्वर आ जाये तो मैं कल ही अपनी सारी साईट्स उन सर्वर पर अपलोड कर दू.. वैसे एक और बात जिस पर आपने नोटिस नहीं किया.. संजय जी के डोमेन का जो टी एल डी है वो .इन है.. जो इंडियन डोमेन्स के लिए है चाहते तो वे .कोम भी रख सकते है..

मुझे लगता है इस बार आपसे जल्दबाजी हुई है.. थोडा रुक कर स्थिति समझ कर लिखा जाना चाहिए था..

ज्ञान said...

क्या कुश भाई? इतनी लंबी टिप्पणी? मैं तो धन्य हो गया। शहर से बाहर था। आज ही देख पाया। एक बात खटकि आपकी कि जब आप कहते हैम कि " तो वे .कोम भी रख सकते है.." तो पूर्णतया गलत कहते हैं। .कोम तो 28 मई 2002 को शैल भार्गव 15 साल के लिये ले चुके हैं तो संजय जी चाहते हुये भी नहीं ले सकते क्योंकि उhनोंने तो अपनी वेबसाईट का डोमेन 13 अप्रैल 2006 को लिया है
त्याग कई बर मजबुरि मे ंभी करना पडता है

इस बार आपसे जल्दबाजी हुई है.. थोडा रुक कर स्थिति समझ कर लिखा जाना चाहिए था..

कुश said...

आप तो छुपे रुस्तम है.. मैंने भी इसे देखा था बाद में. .पर मुझे ख़ुशी हुई कि मेरी बाकी बातो से आप सहमत है.. फिर त्याग तो त्याग है.. चाहे मजबूरी में ही किया हो.. वरना किसी और नाम से .कोम भी तो बुक किया जा सकता है..

संजय बेंगाणी said...

संजय बेंगाणी किसको भड़का रहे हैं?
आपको. हर भारतीय को...
स्वाभिमान के लिए.

मैनें अपने डॉमेन के लिए .कॉम कभी देखा नहीं इसलिए पता नहीं था कि वह उपलब्ध है या नहीं.

आपको मेरी बातों से असहमत होने का पूरा अधिकार है. वहीं मेरी भावनाओं को किसी के द्वारा सत्यापित किये जाने की भी जरूरत नहीं है.