19 October, 2010

वर्धा ब्लॉगर गोष्ठी एवं कार्यशाला का पोस्टमार्टम -2

आज बात की जाये कथित रूप से अनूप शुक्ल की मिल्कियत वाले चिट्ठाचर्चा ब्लॉग पर आई वर्धा ब्लॉगर गोष्ठी एवं कार्यशाला पोस्टो की। यहाँ इतना घालमेल है दसियो ब्लागरो वाला यह ब्लाग फेसबूक पर http://www.facebook.com/fursatiya के नाम से र्जिस्टर्ड है और वहाँ लिखा है Chittha Charcha still spear headed by noted Hindi blogger Anup Shukla। जानते हैं spear का मतलब क्या होता है? बरछी,बल्लम,भाले से मारना। कितना सच लिखा है ना?




फुरसतिया जिसे अनूप शुक्ल अपना ट्रेडमार्क मानते हैं। उनका अपना भी ब्लाग है http://hindini.com/fursatiya/ ट्विटर पर http://twitter.com/fursatiya का मतलब है अनूप शुक्ल। अब कैसे बाकी दसियो ब्लागर चिट्ठाचर्चा ब्लाग पर अपना मन लगाये हुये हैं वही जाने। चिट्ठाचर्चा पर बाकियो की मेहनत पर अपना ठ्प्पा लगाये अनूप शुक्ल ने वर्धा ब्लॉगर गोष्ठी एवं कार्यशाला की रिपोर्ट के लिये चिट्ठाचर्चा को चुना जबकि खुद उनका व्यक्तिगत ब्लाग है।


सरकारी पैसों पर हो रहे कार्यक्रम में गंभीरता से शामिल होने की बजाये इनका पूरा ध्यान मजाकिया रिपोर्टिंग में लगा रहा। 9 अक्टूबर को कार्यक्रम शुरू होने के पहले ही आई एक पोस्ट में विनीत कुमार को हिंदी ब्लॉगिंग की सबसे जागरुक और होनहार प्रतिभा दिक्लेयर कर दिया इन्होने। इससे पहले यह खिताब विवेक और कुश को मिलता रहा है। ऊपर से कह भी दिया कि इनको जबरिया बुलाया जाना चाहिये था। अरविन्द मिश्र के बिना मजा नहीं आता इन्हे किसी महफ़िल में यह भी जाहिर कर दिया। गोया बिना लड़ाई झगड़े और नोक-झोंक के नींद नहीं आती महाश्य को। आप देख रहे हैं ना कि यह वर्धा कार्यक्रम की रिपोर्टिंग है 

इलाहाबाद प्रकरण की याद इनका पीछा नहीं छोड़ती। इसी चक्कर में एक छिछोरी कविता भी रच दि गयी। अब वर्धा कार्यक्रम से इसका क्या लेना देना?इस पर अर्विन्द मिश्र जी ने तुरंत आपत्ति लेते हुए इसे had hai bevkoofee kee कहते हुये चिट्ठाचर्चा ब्लाग की कुछ लाईनों के रूप में आईना दिखाया कि चिट्ठा चर्चा हिन्दी चिट्ठामंडल का अपना मंच है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया देते समय इसका मान रखें। असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

इस पोस्ट पर डॉ. अनुराग ने टिप्पणी में अपनी बात रखी कि उन आंकड़ो पे खुश नहीं होना चाहिए के चिट्ठे ६०० से छह हज़ार हो गए है .....महत्वपूर्ण बात है संवाद की दिशा किस ओर में जा रही है ?कितनी पोस्टे ऐसे है जो गुजरते वक़्त के बाद भी पठनीय है ...कितनी सार्थक बहसे हुई है ? अच्छा पढने वाले लोग कितना प्रोत्साहित हुए है .....? ओर उन्हें कैसे प्रोत्साहित किया जा सकता है ? एक दूसरे की प्रशंसाओ के दौर से बाहर निकल ब्लॉग एग्रीगेटर को ओर बेहतर ओर सरल कैसे बना सकते है इस विषय पर बात करिए या प्रशन उठाये?

डा० अमर कुमार ने रहस्यमय अंदाज में कह ही दिया कि सुना है इस सम्मेलन में भाग लेने गये सभी प्रतिभागियों को अपनी नाक की लम्बाई दिखानी पड़ी थी ?

अगली पोस्ट में नैतिकता की बात पर अनूप शुक्ल ने कहा कि कोई भी आचार संहिता कम से कम ब्लॉगिंग पर लागू न हो सकेगी। सही बात कही ना?वरना खुद इनके ब्लाग पर रक्षा मंत्रालय की निगाह पड़ जाये तो इनके कारखाने के तमाम हथियारों की फोटू और डिटेल का क्या जवाब देंगे!

डा अमर कुमार ने दिल की बात कह ही दी कि गैर-अकादमिक आयोजन के रूप में ऎसी गोष्ठियाँ, ऎसे सम्मेलनादि ध्रुवीकरण एवँ गुटों के गठन की मातृशक्ति है। अपने को लॉबीइँग के शिकार होते रहने से हम कब मुक्त हो पायेंगे?


10 अक्टुबर की पोस्ट में यह बता ही दिया गया कि वहाँ आये काफ़ी लोगों को ब्लॉगिंग के बारे में पहली बार जानकारी मिली। अब बतायो, कहाँ ब्लाग की तकनीकी बातें बताने की बात कही जा रही थी कहाँ लोगों को मालूम ही नहीं कि ब्लागिंग क्या होती है।






10 की सुबह सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी कहते पाये गये कि विश्वविद्यालय के स्थापत्य का नमूना पहाड़ी टीलों की सैर कराकर दिखाऊंगा। अब यह सैर-सपाटा ब्लागिग के किस कार्यक्रम में शामिल था भाई?
cmpershad ने चुटकी भी ली कि आज का दिन ऐतिहासिक है। 10.10.10। सारे दस नम्बरी यहां हैं।


यह बताया गया कि 9 की शाम का सत्र कविता पाठ का था। कई ब्लॉगरों ने अपनी रचनायें सुनायीं। ब्लागिंग तकनीक और आचार संहिता की बातों के बीच कवि सम्मेलन!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

10 के सत्र में अविनाश वाचस्पति ने कहा कि ऐसी बातें करने से बचना चाहिये जिससे लोगों को बुरा लग सकता है। और अगले ही दिन उनकी मीठी गोली कईयों को बुरी लग गई।

एक ही तरह के फोटो और वही बातें दोहराये जाने से उकता कर राम त्यागी ने कह ही डाला कि Can we talk about the results instead of posting the pics, and repeated one liners ? Is someone going to compile the reports which are going to be made public? लेकिन आज तक किसी के कानो में जूँ भी नहीं रेंगी सब के सब फोटो और मिलन कथायों के बारे में लिखते जा रहे हैं

इस मांग पर तिलमिलाये महेश सिन्हा ने कह डाला कि यह इस संस्थान द्वारा आयोजित कार्यक्रम था न कि प्रायोजित। अब इन्हे यह समझाना पड़ेगा कि शब्दों के खेल से ऊपर यह भी बताया जाये कि जो भी भुगतान हुया वह कर-दातायों का पैसा था कि नहीं?

डा अमर कुमार ने एक बेहद सटिख़ बात कह दी कि चर्चा के इसी मँच (चिट्टचर्चा) से विभूति बाबू की कैसी थुड़ी थुड़ी हुई थी http://chitthacharcha.blogspot.com/2010/08/blog-post_1564.html अब उसके प्रायश्चित अनुष्ठान में यह आयोजन विभूति नारायण जी की कृपा से उनकी डेहरी पर प्रायोजित हो रहा और चर्चा के पिछले तमाम रिपोर्ताज में इस तथ्य का उल्लेख नहीं है। ब्लॉगिंग का मुक्त मँच क्या सरकारी / अर्ध-सरकारी इमदाद और दो-नम्बरी बाज़ारवाद की राह चल चुका है?

यहीं राम त्यागी ने फिर कहा कि कार्यक्रम अगर आयोजित भी था तो क्या मिनट ऑफ मीटिंग या एक प्रोपर सारांश भेजा जाना न्यायोचित नहीं? या फिर सटासट फोटो और वाहवाही चिपकाते जाओ और वाहवाही की कमेन्ट लेते जायो तो डॉ महेश सिन्हा ने कहा मुझे समझ नहीं आ रहा है की आपको क्षोभ किस बात का है। अब महेश सिन्हा को कौन बताये कि रिपोर्ट का मतलब पर्सनल खिंची फोटू और मिलन क्थायें लिखना नहीं होता


इस में और आने वाली पोस्ट में भी दुसरों की लिखी पोस्टों की चर्चा की गयी चिट्टचर्चा के बहाने। लेकिन महेश सिन्हा के कहे गये 'महात्मा गांधी हिन्दी विश्वविद्यालय हिन्दी भाषा के उन्नयन एवं प्रसार के लिए स्थापित है।' के अनुसार कहीं भी नहीं बताया गया कि इस कार्यक्रम से हिन्दी भाषा का उन्न्यन व प्रसार कैसे हुया?

रहस्य की चादर ओड़ाये सतीश सक्सेना लिख ही मारे कि सशंकित तो अनूप शुक्ल फुरसतिया से ही रहना चाहिए जो किसी की भी धोती खोलने को हर समय तैयार रहते है ...बचपन में हरकतों के बारे में भी लिख मारो एक दिन!

लोज्जी।लाईट चले गई।यूपीएस सातह नहीं देने वाला।यह अधूरा पोस्तमार्तम यहिं छोड़ना पडेगा। लऊत कर आता हूं।

सभी ब्लॉगरों के नाम के आगे पीछे श्री/ सुश्री व जी लगा हुआ समझा जाये।

15 comments:

अजय कुमार झा said...

अभी अभी आपकी पिछली पोस्ट पढी और अब फ़िर आपकी ये पोस्ट पढी ....जितनी बारीकी से आपने इस सम्मेलन पर सवालिया निशान लगाए हैं ..और वो भी पूरे तर्कों के साथ ..इसमें कोई शक नहीं कि आपकी काबलियत को सलाम । आप जो भी हैं यकीनन हम में से ही एक हैं यदि अलग नहीं हैं तो और ये जो मूरखता का पर्दा आपने ओढ रखा है ..उसके भीतर से आपने बह्तों की चतुराई को मात क्या हुआ है । प्रश्न वाजिब हैं ...और उत्तर अपेक्षित ....ये तेवर बनाए रखिए और हो सके तो ...सबके लिए एक जैसा ही ....ज्ञान पाने के लिए आते रहेंगे

कडुवासच said...

... क्या कामनवेल्थ गेम्स जैसा यहां भी है ?

कडुवासच said...

... लगे रहो भाई जी ... पर्दाफ़ास जरुरी है !!!

गब्बर सिंग said...

अरे ओ सांभा ये वर्धा कहां है रे

गब्बर सिंग said...

हा हा हा हा हा हा ............ ये ब्लागर गोष्ठी क्या है रे

गब्बर सिंग said...

हा हा हा हा हा हा

गब्बर सिंग said...

हा हा हा हा हा हा

गब्बर सिंग said...

हा हा हा हा हा हा

गब्बर सिंग said...

हा हा हा हा हा हा

गब्बर सिंग said...

हा हा हा हा हा हा ........... आक थू

Arvind Mishra said...

भाई ,बड़ी सूक्ष्म नजर है पायी
पढ़ रहा हूँ समापन पर अपना विचार रखूँगा !

Arvind Mishra said...

कहाँ कमी रही मैं बता देना चाहता हूँ मन साफ़ करने की खातिर

राम त्यागी said...

this is my answer on chitta charcha :

डॉ सिन्हा जी, नमस्ते

मुझे क्षोभ नहीं, दुःख नहीं , अपेक्षा और कुछ प्रश्न थे बस
१. कि विस्तृत रिपोर्ट और बिन्दुवत स्पष्टीकरण कहीं उपलब्द्ध है क्या ? (the link you provided here, have all the repeated thing what i see everywhere - not sure how you extinct that with others)
२. कि कार्यक्रम की सार्वजनिक रूप से घोषणा नहीं की गयी थी, पर फिर पता चला कि त्रिपाठी जी के ब्लॉग पर इसको खबर थी, क्या अगले बार से और अधिक पारदर्शिता बरती जा सकती है ?
३. क्या मुझको हिंदी ब्लॉगर और देश का नागरिक होने के नाते आयोजकों से कोई प्रश्न पूछना मना है क्या
४ क्या प्रश्न पूछने से आयोजन की सफलता पर कोई अंकुश लग रहा है
५. आपकी तरह और भी १५००० माईनस ३० /४० लोगों की भी इच्छा रही होगी कि प्रबुद्ध लोगों से मिल सकें
६. इसका नवीन तकनीकियों से जैसे यू ट्यूब वगैरह के माध्यम से और भी अधिक लोगों तक पहुचाने का काम क्यूं नहीं किया गया or can we plan next time ?
७. जो लोग नहीं आ सकते थे क्या कुछ ऐसा सार्वजनिक जगह पर लिखा गया था कि वो ऑनलाइन होकर अपनी बात कह सकते हैं (विडियो कांफ्रेंसे के जरिये )

ऐसे छोटे छोटे प्रश्न (tathakathit - jaisa ki Tripathi said) हैं , जिन पर गौर करके अगली बार कार्यक्रम को और अधिक बढ़िया और लोकप्रिय बनाया जा सकता है , आलोचना कभी कम नहीं होगी, कितना भी सुधारक kar लो पर प्रश्न फिर भी होंगे पर क्या यही बहाना बनाकर हम प्रश्नों को अनुत्तरित रहेने देंगे ? प्रश्नों पर अगर बौखलाहट होने लगे या मुझे हजात जाने को बोल मेरे अमेरिका में रहने का मजाक उड़ाया जाए (KAvita jee also comes in same category) - क्या ऐसा करने से एक सार्वजनिक कार्यक्रम की सार्वजनिक जिम्मेदारी पूरी ho jaati है ? alochana को raddi kii tokari में phenk doge to मुझे कोई asar नहीं और अगर इसको maan loge to भी मुझे कोई phark नहीं पर haan isase आयोजन और हिंदी blogging और aayojnakarta के badppan का ahssas jaroor hota !

is बात को bahut jaldi khatm किया ja सकता था कुछ प्रश्नों को as a feedback shamil करके , har meeting के baad plas or delta की बात karana aajakal का एक standard हैं और हम हिंदी bloggars को और vishvidyalay को भी in मानकों पर पर चलने में संशय क्यूं हो रहा है या क्यों दिखाया जा रहा है !

आशा है, मैं आपका संशय या जदोजहद दूर कर पाया हूँ अपने स्पष्टीकरण से !!

I do not come on this blog or post regulariy so please send me email for further queires, doubts !

Also read

http://meriawaaj-ramtyagi.blogspot.com/2010/10/blog-post_18.html
&
http://meriawaaj-ramtyagi.blogspot.com/2010/10/blog-post_10.html for comments from Tripathi jee and my replies.

ZEAL said...

.

I am loving the post-mortem !

Beautiful autopsy !

.

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

आपकी इस पोस्ट पर हम विलंब से पहुंचे। चीरफ़ाड़ की आपकी उम्दा शैली पसंद आई।
मैंने तो सिर्फ़ 4 लाईन में ही पूछा था। लेकिन बात निकली है तो दूर तक जाएगी।