आज बात की जाये न दैन्यं न पलायनम् ब्लाग लिखने वाले प्रवीण पाण्डेय की। इन्होने 10 तारीख की सुबह 4 बजे अपनी तकलीफ लिखी कि कुछ विचार व्यक्त करने की सार्वजनिक घोषणा होने पर कैसे घबड़ा गये थे। वे यह भी लिखते पाये गये कि इन्हें बिना बताये घोषणा की गई।
आगे वे लिखते हैं कि इन्होने अभी तक विषय पर तब तक ध्यान ही नहीं दिया था, वो तो पोस्टर पर आचार-संहिता लिखा देख विषय का पता चला।
बड़ी बेबाकी से यह सच्चाई भी बता दी कि मैं तो ब्लॉगर दर्शन करने आया था।
इसके बाद जब honesty project democracy ने सिकायत की कि सबसे कम समय उन्होने ही दिया था तो यह आरोप भी स्वीकर कर लिया
अब यह बतायो कि सरकारी पैसों से होने वाले कार्यक्रम में आमंत्रित किये जाने वाले को मालूम ही नहीं कि उसे बुलाया क्यों गया है,विष्य क्या था इस गोष्ठी का,करना क्या है यहाँ उन्हे। ऊपर से यह भी पीड़ा कि बिना बताये बोलने को कह दिया गया। जबकि सभी से पहले ही विषय पर लेख माँगे गये थे। पता है ना महाशय आये क्यों थे? वे तो ब्लागर दर्शन के लिये आये थे।
अब अगर कोई कहे कि ये तो रेल्वे के अधिकारी हैं अपने पैसो से आये होंगे तो वह सुन ले कि इन्हें रेल्वे यात्रा करने के लिये पास देती है, लेकिन सरकारी पैसों वाला।
कुछ भी हो जिस आमत्रित ब्लागर को विषय मालूम न हो, सम्मेलन में दिलचस्पी न हो, केवल ब्लागर दर्शन के लिये आया हो उस पर सरकार पैसा क्यों खर्चे?
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2 comments:
देख लो बचुया।जईसे ही तुमने पोस्तमार्टम किया अनूप की चिट्ठाचर्चा का तो वो दन्न से अपनी ब्लाग साईट पर आ गया वर्धा का हाल ले के।शायद कुछ सरम आई है
देख लो बचुया।जईसे ही तुमने पोस्तमार्टम किया अनूप की चिट्ठाचर्चा का तो वो दन्न से अपनी ब्लाग साईट पर आ गया वर्धा का हाल ले के।शायद कुछ सरम आई है
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