07 October, 2008

नैनो आने के पहले यह हाल है, बाद में क्या होगा?

लाख रूपये में कार खरीदने वाले लाखों लोग अब खुश होंगे कि आखिरकार नैनो कार का उत्पादन गुजरात से होगा। गुजरात सरकार ने अहमदाबाद से लगभग 30 किलोमीटर दूर आनंद कृषि विश्वविद्यालय की एक हज़ार एकड़ ज़मीन टाटा समूह को इस कारखाने के लिए उपलब्ध कराने की पेशकश की है। आणंद कृषि यूनिवर्सिटी की लगभग 2,200 एकड़ ज़मीन राज्य सरकार को स्थानांतरित की जाएगी, जिसके बाद इसमें से 1,000 एकड़ ज़मीन टाटा को दी जाएगी। निर्यात के लिए भी टाटा के लिए आसानी होगी। मुंदरा और कांडला पोर्ट्स नज़दीक हैं और इन पोर्ट्स पर कार एक्सपोर्ट के लिए अलग टर्मिनल्स भी हैं।

मुझे उत्सुकता हुयी कि सिंगूर में कृषि भूमि के अधिग्रहण को लेकर हुए बवाल के बाद कृषि विश्वविद्यालय की जमीन पर लगाने वाली यह जमीन है कहाँ? जब गूगल अर्थ का सहारा लिया तो मेरा मकसद तो पूरा हो गया लेकिन एक भयावह वस्तुस्थिति भी पता चली। समुद्र से लगे गुजरात के औद्योगिक क्षेत्र की बदौलत इतना प्रदूषण दिखा कि नैनो की तस्वीर आंखों के आगे से हट गयी।

उसके बाद पहली तस्वीर जो दिखी वह यह थी:


थोडा सा जूम करने पर जो कुछ दिखा वह था:


फिर भी कुछ अधिक की फिराक में ये पाया:


और अन्तिम जूम पर तो आँखें टिकाने का मन ही नहीं किया, यह भी पाया कि यहीं हमारी 'द्वारका' भी थी:


जब सूरत के किनारे झांकने की कोशिश की तो वहाँ भी ऎसी ही सूरत दिखी:


एक जगह तो साफ साफ दिख रहा था, नदी के ख़तम होते स्थान से समुद्र के पानी में घुलता प्रदूषण:


फिर क्या था, देश के सभी किनारे देख डाले लेकिन ऎसी स्थिति कहीं नहीं मिली। आपको मिले तो ज़रूर बताईयेगा। मेरा ज्ञान कुछ तो और बढेगा।

नैनो के बनने वाले प्रदेश से इतना प्रदूषण, तो नैनो के चलने पर देश में कितना प्रदूषण?
अब कोई यह न कह दे कि हाथी चले बाज़ार, कुत्ते भौंके हज़ार!
(गूगल अर्थ में ये तस्वीरें कहीं ज़्यादा स्पष्ट हैंफिलहाल यहाँ पर विकीमैपिया की सहायता ली गयी है)

7 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

प्रदूषण की ओर किस का ध्यान है। जिस दिन वह मौत का कारण बनने लगेगा तब तक बीमारी ला-इलाज हो चुकी होगी।
नैनो का प्रोजेक्ट जहाँ भी जाएगा जमीन जरूर खाएगा। जब तक औद्योगिकी करण को स्थानीय जनता के साथ मित्रता पूर्ण नहीं बनाया जाता है तब तक समस्या बनी रहेगी। विश्वविद्यालय की भूमि को प्रयोग करना तो और भी अनुचित है। विश्वविद्यालय तो सदा की थाती है। वाहनों का कारखाना तो 25-30 साल में अपनी उमर पूरी कर भूमि को बेकार कर देगा।

शोभा said...

बहुत अच्छा ब्लाग जगत में आपका स्वागत है.

प्रदीप मानोरिया said...

अब छोड़ के यह सिंगूर . कि जाना मुझको है अब दूर
यही नैनो की कहानी है बसा नयनों में पानी है
इस कविताको पढ़ने आप आमंत्रित हैं मेरे ब्लॉग पर
सुंदर प्रस्तुति से तारुफ़ हुआ आपका बहुत स्वागत है
मेरे ब्लॉग पर आप पधारें ऐसी चाहत है

प्रकाश गोविंद said...

सही कहा आपने !
उद्योगपतियों का सिर्फ़ एक धर्म है अपनी जेब भरना ........... और वो चाहे किसी भी कीमत पर हो ! अभी भी जनता के लिए ओजोन या प्रदूषण जैसे शब्द कोई मायने नही रखते हैं ! वक्त रहते अगर हम होश में नही आए तो विनाश के बादल आने में ज्यादा देर नही है |
आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं !
लिखते रहिये !


कभी टाइम मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी आईये :
aajkiaawaaz.blogspot.com

राजीव जैन said...

aapne to tata aur modi kee deshbhakti ki pole khol dee.

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

आपने बहुत अच्छा िलखा है । अापकी प्रितिक्र्या को मैने अपने ब्लाग पर िलखे नए लेख में शािमल िकया है । आप चाहें तो उसे पढकर अपनी प्रितिक्रया देकर बहस को आगे बढा सकते हैं ।

http://www.ashokvichar.blogspot.comं

महेश लिलोरिया said...

ज्ञान जी बहुत ही ज्ञानवर्द्धक जानकारियां दी गई हैं।
विस्तार से बात बाद में कहूंगा।

आरी को काटने के लिए सूत की तलवार???
पोस्ट सबमिट की है। कृपया गौर फरमाइएगा... -महेश